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मुहूर्तराज ]
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देवालये श्लोक की पीयूषधारा टीका के खातारंभ दिनिर्णय शीर्षक में “यत: सर्पण विदिग्व्याप्ता तथा ऐशान्यां तन्मुख, वायव्यामुदरं, ऋत्यां पुच्छम् अत: खाते आग्नेयी सम्यक" ऐसा लिखा है और आरंभ सिद्धि में वास्तुशास्त्रोक्त "ईशानादि" इस श्लोक की टीका में “ज्यारे तेनूं मुख त्रण मास (वैशाख ज्येष्ठ आषाढ़) सुधी ईशानमा होय छे त्यारे अग्नि खूणां मां त्रण मास सुधी नाभि होय छे, नैऋत्य में त्रण मास सुधी पच्छ होय छे अने वायव्य खूणो खाली होय छे । ते खाली खूणो खात विगेरे ने माटे श्रेष्ठ छे । इस प्रकार खात की उपदिशा में अन्तर पड़ता है इससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह अन्तर शेष के दिग्दक्षिणावर्त या दिग्वामावर्त भ्रमण से ही है। यदि शेष की दक्षिणावर्त भ्रमण स्थिति मानी जाय तो "ईशान-आग्नेय-नैऋ त्य" इस प्रकार क्रम है और वामावर्त मानी जाय तो ईशान-वायव्य-नैऋत्य इस प्रकार स्थिति रहती है।
देवालयादि के खातारंभ में राहमुख मानचित्र | देवालय खात में राहु मुख । गृह खात में राहु मुख | जलाशय में राहु राख ।
मीन. मप. वृषभ.
धनु. मका.कम्भ.
सिंह, कन्या, तुला.
मिथुन, कर्क
मकर, कुम्भ, मीन
तुला, वृश्चिक, धनु
ht
न्या.तला.याश्चम
कमभ. मानसप.
भ. मिथुन
कक. सिंह, कन्या
मेष.
देवालयादि खातोपयुक्त विदिइ मानचित्र देवालय खातोपयुक्त विदिशा | गृह खातोपयुक्त विदिशा जलाशय खातोपयुक्त विदिशा
मिथन कर्क, मिह,
मीन. मेष, वृषभ.
वृश्चिक, धनु, मकर
सिह, कन्या, तुला.
मष, वृषभ, मिथन
मकर, काभ. मीन
कन्या.तला.श्चिक
धनु, मकर, कुम्भ
ह.कन्या
वृषभ, मिथन, कके
कुम्भ .मीन, मेष.
तुला. वृश्चिक, धन
कक..
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