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[ मुहूर्तराज ज्योतिश्चिन्तामणिकार के शब्दों में भी खातादि के विषय में
"वृषार्कादित्रिकं वेद्यां, सिंहादि गणयेद् गृहे ।
देवालये च मीनादि तडागे मकरादिषु ॥" अर्थात्-वेदी रचना में वृषार्कादि, गृहारम्भ में सिंहार्कादि, देवमन्दिर में मीनार्कादि और तालाब आदि में मकरार्कादि का विचार करके खातारंभ करना चाहिए।
खातारम्भ नक्षत्र (माण्डव्य)
अधोमुखैभैर्विदधीत खातं, शिलास्तथाचोर्ध्वमुखैश्च पट्टम् ।
तिर्यमुखैरिकपाटकानां गृहप्रवेशो मृदुभिधुवः ॥ अर्थ - मूल, आश्लेषा, कृत्तिका, विशाखा, पूर्वात्रय, मघा, भरणी इन अधोमुख नक्षत्रों में रवात एवं शिलान्यास, आर्द्रा, पुष्य, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषक्, उत्तरात्रय, रोहिणी इन ऊर्ध्वमुख नक्षत्रों में पट्टाभिषेक, मृगशिर, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, स्वाती, पुनर्वसु, ज्येष्ठा, अश्विनी इन तिर्थमुख नक्षत्रों में द्वार, किंवाड आदि तथा मृगशिर, रेवती, चित्रा और अनुराधा इन मृदुनक्षत्रों में तथैव उत्तरात्रय और रोहिणी इन नक्षत्रों में गृहप्रवेश करना शुभावह होता है।
__-खात, पट्टाभिषेकादि के लिए उपयुक्त नक्षत्र ज्ञापक सारणी
कार्य नाम
उपयुक्त नक्षत्र नाम
नक्षत्र संज्ञा
| खातारंभ, शिलान्यास पट्टाभिषेक द्वार कपाटादि निवेश वापी, कूपादि खनन चक्र रथ हलादि निर्माण गृहप्रवेश
मूल,आश्लेषा, कृत्तिका, विशा, पूर्वात्रय, मघा एवं भरणी आर्द्रा,पुष्य, श्र.ध. शत. तीनों उत्तरा एवं रोहिणी मृगशिर, रे.चि. अनु. हस्त. स्वाती, पुन. ज्ये. अश्वि. प्रथम क्रमांक के नक्षत्र तृतीय क्रमांक के नक्षत्र मृदु (मु.रे.चि.अनु.) एवं ध्रुव (उत्तरा तीनों, रोहिणी)
अधोमुख ऊर्ध्वमुख तिर्यङ्मुख अधोमुख तिर्यङ्मुख
मृदु व ध्रुव
देवालयादि में खात विदिशाएँ, नक्षत्र, तिथियाँ, वार, लग्न, ग्रह स्थिति आदि का विचार करने के उपरान्त जिस दिन भूमि को खातार्थ खोदना हो उस दिन भूमि सोती है या जागती है, इसका विचार भी करना चाहिए ऐसा वास्तुशास्त्र में तथा अन्यान्य मुहूर्तग्रन्थों में लिखा है। यहाँ हम मुहूर्तप्रकाशोक्त एक श्लोक को उद्धृत कर रहे हैं जिसमें भूमिशयन के विषय में चर्चा की गई है
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