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मुहूर्तराज ]
[१९९ भूमिशयन विचार-(मु.प्रका.)
प्रद्योतनात् पच नगांक७.९. सूर्य १२ नवेन्दु१९ षड्विंशमितानि२६ भानि । शेते मही नैव गृहं विदध्यात् ।
तडागवापीखननं न शस्तम् ॥ अन्वय - प्रद्योतनात् (सूर्याक्रान्त नक्षत्रात्) पंचनगांकसूर्यनवेन्दुषड्विंशमितानि भाति मही शेते, तत्र गृहं (गेहारंभम्) तडागवापीखननं नैव विदध्यात्। एत त् शस्तम् न।
अर्थ - सूर्यनक्षत्र से ५, ७, ९, १२, १९ और २६ वें चन्द्र नक्षत्र (दिन नक्षत्र) के दिन भूमि शयन करती है, अत: उस दिन गृहारम्भ, तालाब, बावड़ी एवं कूपादि के लिए भूमि को खोदना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसा करना शुभ नहीं है। पक्षान्तर में
बोणाः सत्यशिवा नवा, तिथिनरवा, द्वाविंशत्रिविंशाकाः
अष्टाविंशति वासरे च शयने संक्रान्तिधस्त्रं त्यजेत् ॥ अर्थ - सूर्य संक्रमण दिन से ५, ७, ९, ११, १५, २०, २२, २३ और २६ वें दिन को (सूर्यसंक्रमण के इन अंशों में) भूमिशयन करती है। अत: सूर्य के उक्तांश जिस दिन हो उन दिनों का भूमिखनन में त्याग करना चाहिए।
भूशयन ज्ञानोपाय सारणी सं. १
निम्नलिखित क्रमसंख्या का चन्द्र नक्षत्र हो तो भूमि शयन करती है।
यदि सूर्य महानक्षत्र से
| ५ वा
७ वाँ । ९ वा. १२ वीं | १९ वा । २६ वाँ ।
भूशयन ज्ञानोपाय सारणी सं. २
निम्नलिखित क्रमसंख्या का दिन हो तो भूमि शयन करती है।
यदि सूर्य संक्रान्ति से
५ वाँ
७ वाँ |११ वाँ |११ वाँ | १५ वाँ |२० वाँ | २२ वाँ | २३ वाँ |२६ वाँ
वत्सचार ज्ञान- (आ.सि.)
वत्सः प्राच्यादिषूदेति कन्यादित्रित्रिगे रवौ । प्रवासवास्तु द्वारार्चाप्रवेशाः सम्मुखेऽत्र न ॥
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