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मुहूर्तराज ]
[१९१ में भी, सिंह का सूर्य हो तो भाद्रपद में भी, तुला का सूर्य हो तो आश्विन में भी, वृश्चिक का सूर्य हो तो कार्तिक में भी मकर का सूर्य हो तो पौष में भी और मकर एवं कुम्भ के सूर्य में माघ में भी गेहारम्भ शुभ होता है। अत: नारद का कथन है कि “पौषफाल्गुनवैशाखमाघश्रावणकार्तिकाः। मासाः स्युर्गृहनिर्माणे पुत्रारोग्य शुभप्रदाः।
अब सौर एवं चान्द्रमासों की गेहारम्भार्थ एवं वाक्यता अर्थात् समन्विति करते हुए मुहूर्त चिन्तामणिकार का कथन हैगेहारम्भ में सौरचान्द्रमास समन्वय - - (मु.चि.वा.प्र. श्लो. १६ वाँ)
कैश्चिन्मेषरवौ मघो, वृषभगे ज्येष्ठे, शुचौ कर्कटे । भाद्र सिंह गते घटेऽश्वयुजि चोर्जे लौ मृगे पौषके । माघे नक्रघटे शुभं निगदितं गेहं तथो| न सत्
कन्यायां च तपो धनुष्यपि न सत् कृष्णादिमासाद् भवेत् ॥ अन्वय - कैश्चित् (आचार्यके:) मेषखौ (मेषराशिस्थे सूर्ये) मधौ, (चैत्रे) वृषभगे (वृषराशिगते सूर्ये) ज्येष्ठे, कर्कटे (कर्कराशिस्थे सूर्ये) शुचौ आषाढे, सिंहगते सूर्ये भाद्रे, (भाद्रपदमासे) घटे (तुलाराशिगे सूर्ये) अश्वयुजि (आश्विने मासे) अलौ (वृश्चिकरशिस्थिते सूर्ये) ऊजें (कार्तिके मासे) मृगे (मकर) पौषके मासे, नक्रघटे (मकरकुम्भयौः सूयें) माघे मासे प्रारब्धं गृहं शुभं शुभदं निगदितम् (कथितम्) किन्तु ऊों कन्यायाम तथा तपाः (माघमासः) धनुष्यकें न सत्। अत्र श्लोके मासानां (चान्द्रमासानां) गणना कृष्णादिमासाद् (कृष्णप्रतिपदात्
आरभ्य शुक्लपूर्णिमां यावत्) भवेत्। ___अर्थ - कतिपय आचार्यों का कथन है कि यदि मेष राशि पर सूर्य हो तो चैत्र मास भी, वृष का सूर्य हो तो ज्येष्ठ मास भी, कर्क का हो तो आषाढ़ भी, सिंह का हो तो भाद्रपद भी तुला का हो तो आश्विन भी, वृश्चिक का हो तो कार्तिक भी मकर का हो तो पौष भी मकर अथवा कुम्भ का हो तो माघ मास भी गेहारम्भार्थ शुभ माना गया है, किन्तु कार्तिक में यदि कन्यार्क हो तो माघ में यदि धनुरर्क हो तो ये दोनों मास (कार्तिक एवं माघ) गेहारम्भ के लिए शुभ नहीं है।
यहाँ इस शंका का उठना स्वाभाविक है कि कार्तिक मास में कन्यार्क और माघमास में धुनरर्क (धनराशि पर सूर्य) होना असम्भव है, क्योंकि कार्तिक एवं माघ मास का प्रारम्भ शुक्ल प्रतिपदा से होकर अमावस्या पर्यन्त अन्त होता है, इसके उत्तर में कहते हैं कि यहाँ मास गणना कृष्ण प्रतिपदा से प्रारम्भ करके शुक्ल पूर्णिमा तक करनी चाहिए जैसा कि श्लोक में अन्त में “कृष्णादिमासाद्” से स्पष्ट है। क्योंकि प्रारम्भ तथा समाप्ति के अनुसार मास दो प्रकार के मान्य हैं (१) शुक्लादि (२) कृष्णादि। जब शुक्ल प्रतिपदा से अमावस तक मास मानते हैं, तब वह उसे शुक्लादि मास और कृष्णप्रतिपदा से पूर्णिमा पर्यन्त जब मास माना जाता तब उसे कृष्णादि मास कहते हैं। अत: कृष्णादि कार्तिक में कन्यासंक्रान्ति एवं माघ में धनु संक्रान्ति अवश्य ही संभाव्य है।
गेहारम्भ में संक्रान्तियों एवं मासों की ग्राह्याग्राह्यता के विषय ऊपर लिखे विस्तृत विवेचन का सार निम्नांकित सारणी में स्पष्टरूपेण देखिए
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