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मुहूर्तराज ]
[१४३ ___अर्थ - प्रयाण समय में ब्राह्मण (एक से अधिक) अश्व, हाथी, फल, अन्न, दूध, दही, गाय, सरसों, कमल, स्वच्छवस्त्र, श्रेष्ठ वचन, फूल, ईख, भरा हुआ कलश (जलपूर्ण) छत्र, गीली मिट्टी, कन्या, वेश्या, बाजे, मोर पपीहा, नेवला, बँधा हुआ एक पशु, मांस, रत्न, पगड़ी (साफा) सफेद सांड (बँधा या बिना बँधा) शराब, पुत्रसहित स्त्री, जलती अग्नि, शीशा (कांच) अंजन, वस्त्र धोकर ला रहा धोबी, मछली, घी, सिंहासन, रोदनवर्जित अर्थी (शव) ध्वज, मधु, मेंढा (भेड) अस्त्र (धनुष आदि) गोरोचन भारंड पक्षी, पालकी, वेदघोष, मंगलगीतध्वनि, हाथी चलाने का अंकुश इत्यादि का दिखना (स्वयं अथवा यात्रार्थी द्वारा व्यवस्था किए जाने पर भी) सत्फलदायी है एवं यात्रार्थी के पीछे खाली घड़ा भी शुभ शकुन है। अन्यान्य दैवज्ञों की दृष्टि में शुभसूचकशकुननारद
प्रज्वलाग्निश्च तुरगनृपासनपुराङ्गनाः । गन्ध पुष्पाक्षतच्छत्रचामरान्दोलिका गजाः ॥ भक्ष्येक्ष्वंकुशमृत्सान्न मध्वाज्यदधिगोवृषाः । मत्स्यकांस सुराधौत वस्त्र शंखरवध्वजाः ॥ पण्यस्त्रीपूर्णकलशरत्न भंगारदर्पणम् । भेरीमृदङ्गपटह शंखवीणादि निःस्वना ॥
वेदमंगलघोषाः स्युर्याने वै कार्यासिद्धिदाः । श्रीपति
भारद्वाजो नाकुलश्चाषसंज्ञः छागो बी शोभनो वीक्षितः स्यात् । भृङ्गराञ्जनवर्धमानमुकुराबद्धैक
पश्वामिषोष्णीषक्षीरनृयानपूर्णकसशच्छत्राणि
सिद्धार्थकाः । वाणीकेतनमीनपंकजदधि
क्षौद्राज्यगोरोचनाः , कन्याशयवसितोक्षवस्तुसुमनोविप्राश्वरत्नानि प्रज्वलज्जवलनदन्तितुरंगाः भद्रपीठगणिकांकुशभृत्स्नाः । अक्षतेक्षुफल चामरमक्ष्याण्यायुधानि च भवन्ति शुभानि ॥
भेरीमृदङ्गमृदुमर्दल शंखवीणा वेदध्वनिर्मधुरमंगलगीत घोषाः ॥ पुत्रान्विता च युवतिः सुरभिः सवत्सा, धौताम्बरश्च रजकोऽभिमुखः प्रशस्तः। वसिष्ठ मत से अर्थी की शुभाशुभता
"दृष्टे शवे रोद न वर्जिते च, सम्पूर्णयात्राफलमेव तत्र ।
दृष्टः प्रवेशे तु शवः शवत्वं करोति तद्रोदनवर्जितोऽपि ॥ अर्थात् - यदि यात्राप्रयाण समय में रोदन वर्जित शव (अरथी) सम्मुख मिले तो यात्रार्थी की यात्रा सम्पन्न होती है किन्तु प्रवेश काल में रोदनवर्जित या रोदन सहित किसी भी रूप में सम्मुख मिले तो प्रवेशकर्ता को शवतुल्य बना देती है अर्थात् प्रवेशकर्ता की मृत्यु होती है।
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