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[ मुहूर्तराज अर्थात् - सम्पत्ति आयुष्य एवं कीर्ति की कामना करने वाले पुरुष को चाहिए कि वह आय, नक्षत्र, व्यय, अंश, चन्द्रबल एवं ताराबल को जानकर नवीन भवन का निर्माण करे।
आयादि लाने का प्रकार - (आ.सि.)
आयो दैान्ययोर्धातः फलमष्टतेऽधिकः । फलमष्टगुणं भाप्ते भं तत्राष्टहते व्यय ॥
अर्थ - जिस भूमि में घर बनवाना है, उस भूमि के क्षेत्रफल (लम्बाई x चौड़ाई) में ८ का भाग देने पर जो शेष रहे वह उस भूमिभाग का आय हुआ। क्षेत्रफल को ८ से गुणा करके २७ का भाग देने पर जो शेष रहे उसे नक्षत्र एवं नक्षत्र संख्या में ८ का भाग देने पर जो शेष रहे उसे व्यय समझना चाहिए।
आयादि ज्ञान का द्वितीय प्रकार - (मु.चि.वा.प्र. श्लो. ११ एवं १२ वाँ)
पिण्डे नवाङ्काङ्गगजाग्निनागनागाब्धिनागै गुर्णिते क्रमेण । विभाजिते नागनगाङ्कसूर्यनागर्भतिथ्यक्षखभानुभिश्च । आयो वारोंऽशको द्रव्यऋणमृक्षं तिथिर्युतिः आयुश्चाथ गृहशर्क गृहभैक्यं मृतिप्रदम् ॥
अन्वय - पिण्डे (क्षेत्रफले) नवस्थानेषु स्थापिते नवाङ्कांगगजाग्निनागनागाब्धिनागैः (९,९,६,८,३,८,८,४,८) गुणिते ततः नागनगांकसूर्यनागर्भ तिथ्यक्षखभानुभिः च विभाजिते यद् अवशिष्टम् तद् आयादिकं भवेत्।
अर्थ - भवन बनवाने की निश्चित भूमि के क्षेत्रफल की संख्या को ९ स्थानों पर स्थापित करके क्रमश: ९,९,६,८,३,८,८,४ और ८ गुणा करे, फिर उन गुणनफलों में क्रमश: ८,७,९,१२,८,२७,१५,२७ और १२० का भाग दें तत: ९ स्थानों पर जो २ अंक शेष रहे वे उस भूमि के आय, वार, अंश, द्रव्य, ऋण, नक्षत्र, तिथि, योग और आयु हुए।
उदाहरण - किसी घर के निर्माणार्थ जो भूमिभाग हमने निश्चित किया है यदि उसकी लम्बाई २० मीटर एवं चौड़ाई १६ मीटर हो तो उस भूभाग का क्षेत्रफल २० X १६ = ३२० वर्गमीटर हुआ। इसे ९ स्थानों पर रखकर उक्त विधि से गुणित एवं विभाजित करने पर जो आयादि आए उन्हें निम्न सारणी में देखें।
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