________________
१७८ ]
[ मुहूर्तराज व्यय लाने का प्रकार - (आ.सि.) ___ वास्तु के जन्मनक्षत्र में ८ का भाग देने पर जो शेष रहे वह वास्तु का व्यय होता है, यदि भाग देने पर • शून्य शेष रहे तो उसे भाजक तुल्य ही अर्थात् ८ ही मानना चाहिए और यदि ८ का भाग न लगे तो उस नक्षत्र का संख्या को ही व्यय माने। इस प्रकार उस निर्मेय भवनादि का व्यय ज्ञात करने पर यदि आय व्यय समान हो तो उसे “पैशाच व्यय", आय से व्यय अधिक हो तो उसे “राक्षस व्यय” और आय से कम व्यय हो तो उसे “यक्ष व्यय" कहते हैं। यही अन्तिम व्यय श्रेष्ठ माना गया है - यथा
"पैशाचस्तु समायः राक्षसश्चाधिके व्यये ।
आयातूनतरो यक्षो व्ययः श्रेष्ठोऽष्टधात्वयम् ।" यह व्यय भी आठ प्रकार का है - (आ.सि.)
"शान्तः क्रूरः प्रद्योतश्च, श्रेयानथ मनोरमः
श्रीवत्सो विभवश्चैव चिन्तात्मको व्ययोऽष्टमः ॥ अर्थ - वास्तु के जन्मनक्षत्र में आठ का भाग देने पर जो शेष अंक रहे उसे व्यय कहते हैं। यदि शेष अंक १ रहे तो शान्त व्यय, २ रहे तो क्रूर व्यय, ३ रहें प्रद्यात, ४ रहें तो श्रेयान्, ५ रहें तो मनोरम, ६ रहें तो श्रीवत्स, ७ रहें तो विभव और ८ रहें तो उसे चिन्तात्मक व्यय कहते हैं। अंश लाने का प्रकार - (आ. सि.)
फले व्ययेन वेश्माख्याक्षरैश्चाढ्ये विभाजिते ।
अंशा शक्रान्तकक्ष्भायाः तेषु स्यादधमो यमः ॥ अर्थ - घर की भूमि के क्षेत्रफल में व्ययांक एवं घर के नामाक्षरों को जोड़कर उसमें ३ का भाग देने पर शेष अंश कहलाते हैं। यदि १ शेष रहे तो शक्राख्य अंश, २ शेष रहें यमाख्य अंश और ३ शेष रहें तो क्ष्मापाख्य (राजाख्य) नामक अंश हुआ। इन अंशों में यमांश अधभ है, शेष इन्द्र एवं राज नामक अंश शुभ माने गये हैं।
__ अंशों को लाने के लिए भूभाग पिण्डांक व्ययांक और घर के नामाक्षरों के योग में ३ का भाग देने पर शेष अंश होते हैं, ऐसा ऊपर जो घर के नामाक्षरों की बात कही गई अतः अब घरों के नाम भी कहना आवश्यक है, अतः अब घरों के नाम कहे जाते हैं। घरों के नाम - (आ.सि.)
ध्रुवं १ धन्यं २ जयं ३ नन्दं ४ खरं ५ कान्तम् ६ मनोरभम् ७ । सुमुखं, ८ दुर्मुखं, ९ क्रूर १० सुपक्षं ११ धनदं १२ क्षयम् १३ ॥ आक्रन्दं १४ विपुलं १५ चैव दिजयं चेति षोडश ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org