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[ मुहूर्तराज सारांस यह हुआ कि भवन के द्वारदेश अथवा पिछली दीवार की ओर गृह नक्षत्र न होकर दोनों पार्यो की दीवारों में स्थित रहना गृहारंभ के लिए अनुकूल एवं शुभ है।
उपर्युक्त चन्द्र स्थिति की चर्चा स्पष्टतया करते हुए ब्रह्मशम्भु ने कहा है
"गृहाय लब्धऋक्षेषु यत्र ऋक्षे च चन्द्रमाः । शलाकासप्तके ध्येयं कृत्तिकादि क्रमेण च ॥ वाम दक्षिणभागे तु प्रशस्तं शान्तिकारकम् । अग्रे पृष्ठे न दातव्यं यदीच्छेच्छ्रेय आत्मनः । ऋक्षे चन्द्रस्य वास्तोश्च त्वले पृष्ठे न शस्यते ॥"
- अर्थ - व्याख्यात किया गया है। किन्तु वास्तु शास्त्र में प्रासादादि के आरंभ में चन्द्र की स्थिति प्रासाद के सम्मुख श्रेष्ठ मानी गई है यथा
"प्रासादनृपसौधश्रीगृहेषु पुरतः शशी" अर्थात्- प्रासाद (चैत्य) राजभवन और लक्ष्मी भवनों में सम्मुख चन्द्र श्रेष्ठ है।
वास्तु शास्त्र में राशि निर्णय
अश्विन्यादित्रयं मेष, सिंहे प्रोक्तं मघात्रयम् । मूलादित्रितयं चापे, शेषेश नव राशयः ॥
अन्वय - अश्विन्यादित्रयं (अश्विनी भरणी कृत्तिका नक्षत्राणि) मेषे (मेषराशौ) मद्यात्रयम् (मघापूर्वोत्तराफाल्गुनी नक्षत्राणि) सिंहे (सिंहराशौ) मूलादित्रितयम् (मूलपूर्वोत्तराषाढ़ा नक्षत्राणि) चापे (धनूराशौ) प्रोक्तम् शेषेषु नक्षत्रेषु नव राशय: (वृष मिथुन कर्क कन्या तुला वृश्चिक मकर कुंभ मीनाः) भवन्ति।
वास्तु नक्षत्र यदि अश्विनी भरणी या कृत्तिका हो तो उस वास्तु (गृह) की मेष राशि, मघा, पू.फा. और उत्तरा फाल्गुनी हो तो सिंह राशि, तथा मूल पूर्वाषाढ़ा या उत्तराषाढ़ा हो तो वास्तु की धनु राशि जाननी चाहिए तथा अवशिष्ट १८ नक्षत्रों में अवशिष्ट नौ (वृषादिक) राशियों का समावेश समझना चाहिए। यथा रोहिणी, मृगशिरा की वृष राशि, आर्द्रापुनर्वसु की मिथुन पुप्या, श्लेषा की कर्क, हस्त, चित्रा की कन्या, स्वाती विशाखा की तुला अनुराधा, ज्येष्ठा की वृश्चिक, श्रवण, धनिष्ठा की मकर, शतभिषा, पूर्वाभाद्र की कुंभ तथा उत्तरा भाद्रपद एवं रेवती की मीन राशि माननी चहिए। यह पक्ष वास्तु शास्त्र नवमांशों के कथनाभाव में माना गया है। इन राशियों के नक्षत्रानुसार निम्नांकित सारणी में देखिए
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