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मुहूर्तराज ]
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अर्थ - यदि सती स्त्री जो विधवा होने की इच्छा न रखे उसे चाहिए कि वह हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, धनिष्ठा, अश्विनी और रेवती इन नक्षत्रों में से किसी भी नक्षत्र के साथ मंगल, गुरु, शुक्र एवं रवि का योग होने पर मोती, मूंगा आदि से जटित आभूषण, शंखाभूषण, सुवर्ण, हाथी दांत के बने आभूषण एवं रक्त वस्त्र धारण करें।
स्त्रियों के लिए रक्तवस्त्रधारण में निषिद्ध नक्षत्र
(आ.सि.)
" पुष्यं पुनर्वसुं चैव रोहिणीं चोत्तरात्रयम् । कौसुंभे वर्जयेद् वस्त्रे भर्तृघातो भवेद्यतः ॥ '
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अर्थात् - स्त्रियों को रक्तवर्ण वस्त्र धारण करने में पुष्य, पुनर्वसु, रोहिणी और तीनों उत्तरा ये नक्षत्र त्याग करने चाहिए, क्योंकि इनमें रक्तवस्त्र धारण करने से उनके पति का नाश होता है अथवा पति को मृत्युतुल्य कष्ट भुगतना पड़ता है ।
कहीं-कहीं दुष्टदिन को भी वस्त्रधारण का विधान
(मु.चि.न.प्र. ७९ वाँ)
विप्राज्ञया तथोवाहे राज्ञा प्रीत्यार्पितं च यत् । निन्द्येऽपि धिष्ण्ये वारादौ वस्त्रं धार्यं जगुर्बुधाः ॥
धिष्ण्ये वारादौ निन्धेऽपि यद् वस्त्रं विप्राज्ञया तथोद्वाहे राज्ञा च प्रीत्यार्पितं तद् धार्यम् इति
तथा काश्यप भी
अन्वय बुधा: जगुः ।
अर्थ - विद्वानों का कथन है कि नक्षत्र एवं वार तिथि आदि के भद्राव्यतिपातादि दोषों से दूषित होने पर भी ब्राह्मण की अनुमति से एवं विवाह में तथा प्रेमपूर्वक राजा द्वारा प्रदत्त वस्त्र तत्काल धारण कर लेना चाहिए। यहाँ वस्त्र का ग्रहण उपलक्षणार्थ है अर्थात् वस्त्र की ही भाँति ब्राह्मणानुमति एवं विवाहादि शुभावसरों पर प्राप्त हाथी, घोड़े एवं द्रव्यादि भी ग्रहण करना दूषित नहीं है ।
इस विषय में रत्नमालाकार
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राजदर्शनमुहूर्त - (र.मा.)
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“विप्रादेशात्तथोवाहे क्षमापालेन समर्पितम् । निन्थेऽपि धिष्ण्ये वारादौ वस्त्रं धार्यं जगुर्बुधाः ॥ "
"प्रीत्या क्ष्मापालदत्तं यद् विप्रादेशात्करग्रहे । निन्धेऽपि धिष्ण्ये वारादौ धारयेच्च नवाम्बरम् ॥
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सौम्याश्विपुष्यश्रवणश्राविष्ठाहस्तधुवत्वाष्ट्रमपूषमनि मैत्रेययुक्तानि नरेश्वराणां विलोकने भानि शुभप्रदानि ॥
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