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मुहूर्तराज ]
[१५१ किन्तु राजदर्शनार्थ यात्रा करने में यात्रा के समान ही शकुनों की शुभाशुभता जाननी चाहिए। वामाङ्ग के शुभसूचक शकुनपदार्थ- (मु.चि.या.प्र. श्लो. १०५ वाँ)
- वामाङ्गे कोकिला पल्ली पोतकी सूकरी रला ॥
पिङ्गला छुच्छुका श्रेष्ठाः शिवाः पुरुषसंज्ञिताः ॥ अर्थ - यात्रा समय में यात्रार्थी के वाम भाग में कोयल, छिपकली, पोतकी सूकरी (एक प्रकार की चिड़िया) रला (पक्षीविशेष) पिंगला (भैरवी) छुछुन्दरी मादा सियार तथा पुरुषसंज्ञक (कपोत हंस चातक आदि पक्षी) शुभ माने गये हैं। दक्षिणभंग के शुभसूचक शकुन - (मु.चि.या.प्र. श्लो. १०६ वाँ)
छिक्करः पिक्कको भासः, श्रीकण्ठो वानरो रुरुः ।
स्त्रीसंज्ञकाः काकऋक्षश्वानः स्युर्दक्षिणाः शुभाः ॥ अर्थ - छिक्कर (एक प्रकार का मृग) पिक्कक (एक प्रकार का पक्षी) भास (पक्षीविशेष) श्रीकण्ठ (नीलकण्ठ) वानर रुरु (मृग विशेष) एवं अन्य स्त्रीसंज्ञक (पशु पक्षी विशेष) तथा कौआ, रीछ और कुत्ता ये यात्रार्थी के प्रयाणकाल में दक्षिण भाग में शुभफलदायी होते हैं।
उपरि लिखित मृगादि एवं पक्षी आदि के अतिरिक्त अन्य मृगपक्षियों का सामान्यत: यात्रार्थी के दाहिनी ओर रहना शुभ शकुन माना गया है इस विषय में भी मुहूर्त चिन्तामणिकार_ "प्रदक्षिणगताः श्रेष्ठाः यात्रायां मृगपक्षिणः ॥
ओजा मृगा वजन्तोऽतिधन्याः वामे खरस्वनः ॥ अर्थात् - यात्राकाल में सामान्यत: मृग एवं पक्षियों का यात्रार्थी के दाहिनी ओर रहना शुभशकुन है, किन्तु यहाँ मृगसंख्या ओज अर्थात् विषम (१, ३, ५, ७ आदि) होनी चाहिए। तथा च यात्राकाल में बाईं ओर गधे का रेंकना भी शुभ है।
श्री वराहमिहिर तो मृगों की भांति पक्षियों की भी यात्राकाल में दक्षिण भाग में विषम संख्या को शुभफलदा मानते हैं
"ओजाः प्रदक्षिणं शस्ताः मृगाश्वनकुलाण्डजा" अर्थात् मृग, अश्व, नेवला एवं अण्डज (पक्षी) दाहिनी ओर विषम संख्या वाले ही शुभ हैं। समयविशेष से एवं निवास विशेष से शकुन निष्फलता - (वराह)
दिवाचरो न शर्वर्याम् न च नक्तंचरो दिवा । न च ग्राम्यो वने ग्राहयो नारण्योग्राम संस्थितः ।
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