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मुहूर्तराज ]
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चण्डेश्वर:
खरोष्ट्रमहिषारुढ़ाः अमांगल्यादिसंयुता । कर्णतालादिभिर्हीनाः विवशाः कृष्णवाससः ॥ मुक्तकेशातिकृष्णाङ्गाः तैलाभ्यक्तरजस्वला । गर्भिणी विधवोन्मत्ताः क्लीबान्धबधिरा:नराः ॥
एतेषां दर्शने जाते न गन्तव्यं कदाचना । इस प्रकार अनेक ज्योतिर्विदों को शुभसूचक एवं अशुभसूचक शकुनों के विषय में मत समान ही हैं।
वसन्तराज का मत
"सर्वं शुभं दक्षिणत: कार्यम् निन्द्यं तु वामनः” अर्थात् किसी शुभ शकुन के पदार्थ को दाहिनी ओर तथा अशुभसूचक शकुन पदार्थ को बाईं ओर रखकर यात्रा करनी चाहिए।
धन माल, कुटुम्ब-परिवारादि सब नाशवान और निजगुण घातक है। इनमें रहकर जो प्राणी बड़ी सावधानी से अपने जीवन को धर्मकृत्यों द्वारा सफल बना लेता है, उसी का भवसागर से बेड़ा पार हो जाता है। शेष प्राणी चौराशी लाख योनियों के चक्कर में पड़कर, इधर-उधर भ्रमण करते रहते हैं। अतएव शरीर जब तक सशक्त है और कोई बाधा उपस्थित नहीं है, तभी तक आत्म कल्याण की साधना कर लेना चाहिए। अशक्ति के पंजे में घिर जाने के बाद कुछ नहीं हो सकेगा, फिर तो यहाँ से कूच करने का डंका बजने लगेगा और असहाय होकर जाना पड़ेगा।
- श्री राजेन्द्रसूरि
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