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[ मुहूर्तराज वसिष्ठ का भी मत है कि जन्मलग्न एवं जन्मराशि के स्वामी शुभग्रह यदि लग्नस्थ हों अथवा जन्मलग्न और राशिलग्न तभी शुभावह है, जबकि उनके स्वामी शुभग्रह हों यदि पापग्रह हों तो उनकी राशि के लग्न समय में यात्रा अशुभ ही है।
जन्मराशौ लग्नगते तदीशे वा विलग्नगे ।
अभीष्टफलदायात्रा राशिशश्चेच्छुभग्रहः ॥ अनिष्ट लग्न का एक और प्रकार-(मु.चि.या.प्र. श्लो. ४५ वाँ)
जन्मराशितनुतोऽष्टमेऽथवा स्वारिभाच्च रिपुभे तनुस्थिते ।
लग्नगाः तदधिया यदाथवा स्पुगतं हि नृपतेर्मृतिप्रदम् ॥ अन्वय - (यात्राकर्तुः) जन्मराशितनुत: अष्टमे राशौ यात्रालग्ने तथा स्वारिभात् यात्राकर्तुः स्वशत्रौः राशेः लग्नाद् च रिपुभे (षष्ठराशौ) तनुस्थिते (यात्रालग्नस्थे) अथवा यात्रार्थिन: जन्मराशि जन्मलग्नाभ्यां अष्टमभवने स्वशत्रोर्जन्मराशिजन्मलग्नाभ्यां षष्ठभवने यदि तत्तद्राशिस्वामिनो ग्रहाः यात्राकाललग्नगताः स्युस्तदा यात्राकर्तुः राज्ञ: मृतिप्रदाः ।
अर्थ - यात्रा करने वाले की जन्मराशि से अथवा जन्मलग्न से आठवीं राशि यात्रा लग्न में हो तथा यात्रार्थी के स्वशत्रु की जन्मराशि अथवा जन्मलग्न से छठी राशि यात्रा लग्न में हो अथवा यात्रार्थी की जन्म एवं लग्न राशि से आठवीं राशि के और अपने शत्रु की जन्मराशि और जन्मलग्न से छठी राशि के स्वामी ग्रह यात्राकाल के लग्न में स्थित हों तो यात्रा करने वाले नरपति की अवश्यमेव मृत्यु होती है। इसी विषय में वशिष्ठ का मत____ यात्रार्थी की जन्मराशि से अथवा जन्म लग्न से आठवीं या बारहवीं राशि यदि यात्राकाल के लग्न में हो तो यात्रार्थी की यात्रा विनष्ट हो जाती है
स्वाष्टलग्ने लग्नगते राशौ वा लग्नगे सति ।
यातुर्भङ्गो भवेत्तत्र द्वादमे वाथ लग्नगे ॥ यात्रार्थ शुभ लग्न–(मु.चि.या.प्र.श्लो. ४६ वाँ)
लग्ने चन्द्रे वापि वर्गोत्तमस्थे, यात्रा प्रोक्ता वाञ्छितार्थंकदात्री ।
अम्भोराशौ वा तंदशे प्रशस्तं, नौकायानं सर्वसिद्धि प्रदायि ॥ अन्वय - मीनकुंभव्यतिरिक्ते यस्मिन्कस्मिंश्चिद्लग्ने वर्गोत्तमस्थे वर्गोत्तमनवांशे अथवा चन्द्रे वर्गोत्तमस्थे सति यात्रा वाच्छितार्थंकदात्री (वाञ्छितार्थस्य प्रधानत: दात्रा) भवति (अवश्यमेव यात्रासिद्धिरित्यर्थः) अथ नौका यात्रालग्नं कथ्यते–अम्भोराशौ (जलचरराशौ) लग्नगते अथवा लग्नान्तरेऽपि तदन्तर्गतजलचरराशिनवांशे सति नौकायानम् (नौकायात्रा) सर्वसिद्धिप्रदामि प्रशस्तम् (उक्तम्)।
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