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मुहूर्तराज ]
[१२९ अर्थ - मीन एवं कुंभ लग्न एवं इनके नवांश को छोड़कर जिस किसी लग्न के वर्गोत्तम रहते अथवा चन्द्र के वर्गोत्तम रहते की गई यात्रा निश्चयपूर्वक वाञ्छित अर्थ की सिद्धि करती है तथा नौका यात्रा के लिए जलराशि अथवा उसका नवांश हो तब वह (नौकायात्रा) सर्वसिद्धिप्रदात्री होती है। यात्रा के लग्न विषय में वसिष्ठ मत
वर्गोत्तमांशत्रे लग्ने त्वथवापि सुधाकरे ।
यात्रा कामदुधा यातुर्माता पुत्रस्य वै यथा ॥ __ अर्थात् जिस प्रकार माता पुत्र की अमीष्टसाधिका होती है उसी प्रकार वर्गोत्तमनवांश लग्नगत होने पर की गई यात्रा प्रयाणकर्ता के सभी इष्टों को सिद्ध करती है।
नौका यात्रा के विषय में मु. चिन्तामणिकार के ही कथन से सम्मत नारद, दुर्गादित्य एवं वराह के मतनारद
“जलोदयो जलांशोऽपि जलयाने शुभप्रद" अर्थात् जलचर राशि अथवा जलचर राशि नवांश का लग्न जलयात्रा में शुभद है। दुर्गादित्य
___ “नौयानभाप्यभवनेषु विलग्नगेषु कुर्यात्तथान्यगृहगेषु तदंशकेषु" अर्थात् जलचर राशियों के अथवा अन्यान्य राशियों में भी जलचरराशि नवांशों में नाव द्वारा यात्रा करना श्रेयस्कर है।
वराह
“नौयानमिष्टं जलराशिलग्ने तदंशके वान्यगृहोदयेऽपि” जलराशि के लग्नस्थ होते अथवा अन्य राशियों में जलराशि के नवांश के लग्नगत होते नौका यात्रा इष्ट फल देती है।
दिशाओं के लिए अनुकूल अथवा प्रतिकूल राशियों के लग्न में रहते जो-जो फल होते हैं उनके विषय में मुहूर्त चिन्तामणिकार कहते हैं। दिशानुसार मेषादिराशियों के यात्रालग्न का फल- (मु.चि.या. प्र. श्लो. ४७ वाँ)
दिग्द्वरभे लग्नगते प्रशस्ता, यात्रार्थदात्री जयकारिणी च ।
हानि विनाशं रिपुतो भयं च, कुर्यात्तथा दिग्प्रतिलोभ लग्ने ॥ अन्वय - दिग्द्वारभे लग्नगते सति यात्रा अर्थदात्री जयकारिणी च भवति। तथा दिक्प्रतिलोमलग्ने (कृता) यात्रा हानि विनाशं रिपुतोभयं च कुर्यात्।
अर्थ - दिशाओं स्वस्वनिश्चित राशियों के यात्रा लग्न में रहते की गई यात्रा अर्थसिद्धि तथा विजय प्रदान करती है किन्तु दिशाओं की विपरीत राशियों के लग्न में रहते यदि यात्रा की जाए तो वह यात्रा हानि, विनाश एवं शत्रुभय करती है।
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