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मुहूर्तराज ]
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भावों की पुष्टि करते हैं। लग्न में छठे स्थान में और आठवें स्थान में स्थित चन्द्रमा हानिप्रद है तथैव शुक्र सप्तम भाव में स्थित यात्राकर्त्ता के लिए अहितकर है और अष्टम भाव में चन्द्रमा की स्थिति तो प्रयाणकर्त्ता की मृत्युकारिणी ही होती है।
इसी आशय को लेकर वराह एवं श्रीपति ने भी कहा है
वराह
प्रायोजगुः
सहजशत्रुदशायसंस्थाः पापाः शुभाः सवितृजं परिहृत्य खस्थम् । सर्वत्रगाः शुभफलं जनयन्ति सौम्याः त्यक्त्वास्तसंस्थमरारिगुरुं
यियासौ ॥
अर्थात् – केवल पापग्रहों में शनि की दशमभावगता स्थिति को छोड़कर शेष सभी पापग्रह ३, ६, १० और ११ स्थान में शुभफलद होते हैं तथा शुक्र की सप्तमभाव स्थिति को त्यागकर सभी शुभग्रह सभी स्थानों में शुभ फलदायी ही है।
श्रीपति
क्र.सं.
१
२
७
८, ९
यदि
ग्रह
सूर्य
चन्द्र
मंगल
बुध
गुरु
शुक्र
शनि
राहु-केतु
लग्नपति
{
शुभग्रह
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क्रूर - ग्रहाः त्र्यरिदशायगताः शुभाः स्युः, हित्वा शनि दशमभावगतं यियासोः । मूर्त्यादिभावनिचये सकलेsपि सौम्याः श्रेष्ठाः भृगोस्तनयमस्तगतं विहाय ॥
- यात्रालग्न-ग्रह- शुभाशुभस्थान ज्ञापक सारणी
शुभ स्थान
३, ६, १०, ११
४, ७, १०, ९, ५, २, ३, ११
३, ६, १०, ११
१, ४, ७, १०, ९, ५, २, ३,
१, ४, ७, १०, ९, ५, २, ३, ११
१, ४, १०, ९, ५, २, ३, ११
३, ६, ११
३, ६, १०, ११
शुभग्रहोक्त शेष स्थान अशुभग्रहोक्त शेष स्थान
, ११
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अशुभ स्थान
१, २, ४, ५, ७, ८, ९, १२
१, ६, ८, १२,
१, २, ४, ५, ७, ८, ९, १२
६, ८,
१२
१२
६, ८,
६, ७, ८,
१२
१, २, ४, ५, ७, ८, ९, १०, १२
१, २, ४, ५, ७, ८, ९, १२
७, १२, ६, ८
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