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[ मुहूर्तराज (३) युति दोष-(शी.बो.)
यत्र गृहे भवेच्चन्द्रो ग्रहस्तत्र यदा भवेत् ।
युतिदोषो तदा ज्ञेयो विना शुक्रं शुभाशुभा ॥ अन्वय - यत्र गृहे (राशौ) चन्द्रः तत्र (राशौ यदि) यदा (अन्यः) शुक्रं विना ग्रहः भवेत् तदा शुभाशुभ: (शुभग्रहेण युते शुभः पापेन च युते चन्द्रेऽशुभः) युतिदोषः ज्ञेयः। ___ अर्थ - जिस राशि में चन्द्र हो उसी राशि पर यदि शुक्र के बिना अन्य शुभग्रह हो तो शुभ युति और पापग्रह हो तो पापयुति समझनी चाहिये। युतिफल-(शी.बो.)
रविणा संयुतो हानिम् भौमेन निधनं शशी ।
करोति मूलनाशं च राहुकेतु शनैश्चरैः ॥ अन्वय - रविणा संयुत: चन्द्रो हानिम्, भौमेन (संयुतः) निधनम् राहुकेतुशनैश्चरैः (संयुतः) शशी मूलनांश करोति।
अर्थ - सूर्य से युक्त चन्द्रमा हानिकारक, मंगल से युक्त मृत्युकारक होता है और राहु केतु अथवा शनि युक्त होने पर मूलनाश करता है। (४) पंचशलाकावेध विवाह में वर्ण्य (मु.चि.वि.प्र.श्लो. ५६वाँ)
वेधोऽन्योऽन्यमसौ विरंच्यभिजितोर्याम्यानुराधक्षयोः । विश्वोन्द्वोर्हरिपित्र्ययो ग्रहकृतो हस्तोत्तराभाद्रयोः ॥ स्वातीवारूणयोर्भवेन्निर्ऋतिभादित्योस्तथोफान्तयोः ।
खेटे तत्र गते तुरीयचरणाद्यो तृतीयद्वयोः ॥ अन्वय - असौ वेधः अन्योऽन्यम् विरंच्यभिजितो:, याम्यानुराधक्षयोः विश्वेद्वोः, हरिपित्र्ययोः, हस्तोत्तराभाद्रयोः स्वातीवारुणयोः निक्रतिभादित्योः तथा उफान्त्ययोः ग्रहकृतो (भवति) तुरीय चरणाद्ययोः (चतुर्थप्रथमचरणयोः) तृतीयद्वयोः (तृतीय द्वितीय चरणयोः) तत्र खेटे गते (वेध: स्यात्।)
अर्थ - पंचशलाका में नक्षत्रों का अन्योन्य वेध इस प्रकार है। रोहिणी और अभिजित् का, भरणी और अनुराधा का, मृगशिरा और उत्तराषाढ़ा का, उत्तराफाल्गुनी और रेवती का, हस्त और उत्तरा भाद्रपद का, मूल और पुनर्वसु का, स्वाती और शतभिषा का, मघा और श्रवण का। इन आठ युग्मों में से यदि कोई विवाहादि नक्षत्र सामने वाले नक्षत्र पर बैठे ग्रह से दृष्ट हो तो उस नक्षत्र को विद्ध कहते हैं। अर्थात् विवाहादि नक्षत्र के सामने के नक्षत्र पर किसी भी ग्रह का स्थित होना वेध है।
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