________________
१२२ ]
प्रतिशुक्रापवाद- श्री लल्लाचार्य
अर्थ
शुक्र ( सम्मुख अथवा दाहिनी बाजू का) दोषकारक नहीं है।
-
काश्यपेषु वसिष्ठेषु भारद्वाजेषु वात्स्येषु एक ग्रामे पुरे वापि दुर्भिक्षे
भृग्वत्र्याङ्गिरसेषु च । प्रतिशुक्रम् न विद्यते ॥ राष्ट्रविप्लवे । विवाहे तीर्थयात्रायां वत्सशुक्रौ न चिन्तयेत् ॥ स्वभवनपुरप्रवेशे देशानां विभ्रमे तथोद्वा ।
नव वध्वागमने च प्रतिशुक्रविचारणा नास्ति ॥
कश्यप, वसिष्ठ, भृगु, अत्रि, अंगिरा भारद्वाज और वत्स इन सात ऋषियों के मत में प्रति
एक ही गाँव में, नगर में, दुष्काल में, राज्य के उपद्रवों में, विवाह में और तीर्थयात्रा में वत्स और शुक्र का विचार न करें।
तथैव - वसिष्ठ
स्वयं के घर में, स्वाभाविक रूपेण प्रवेश में, नगर प्रवेश में, विदेश के वारंवार यातायात में, विवाह में तथा नवीन बहू को पीहर से ससुराल ले आने प्रतिशुक्रवत् प्रतिभौम एवं प्रतिबुध का भी त्याग
शुक्र का सम्मुखत्व दोषकारक नहीं
कतिपय आचार्यों का मत है कि यात्रा में तीनों प्रकार से सम्मुख शुक्र का त्याग करें किन्तु उस प्रतिकूल शुक्र से भी प्रतिमंगल अधिक कष्टकारक एवं प्रतिकूल मंगल से भी प्रतिबुध और विशेष कष्टदायक होता है, अतः प्रतिमंगल और प्रति बुध का भी त्याग करना चाहिए - यथा
-
Jain Education International
प्रतिशुक्रं त्यजन्त्येके, यात्रायां त्रिविधं बुधाः । तस्मात्प्रतिकुजम् कष्टं ततोऽपि प्रतिसोमजम् ॥
[ मुहूर्तराज
प्रतिशुक्रं प्रतिबुधं प्रतिभौमं गतो नृपः । बलेन शक्रतुल्योऽपि हतसैन्यो निवर्तते ॥
अर्थ शुक्र, बुध और मंगल के प्रतिकूल रहते यदि राजा भले ही वह सैन्य से इन्द्रतुल्य हो युद्धार्थयात्रा करता है तो उसकी सेना नष्ट हो जाती है और उस राजा को हार खानी पड़ती है।
यहाँ रैभ्य का मत
प्रतिशुक्रादिदोषोऽयं नूतने गमने नृणाम । राज्ञां विजययात्रायां नान्यथा दोषमावहेत् ॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org