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[ मुहूर्तराज अर्थ - सोम तथा शनिवार को पूर्व में, गुरुवार को दक्षिण में, शुक्र एवं रविवार को पश्चिम में तथा मंगल और बुध को उत्तर में यात्रा न करें।
यह कहकर वारशूल का निर्देश किया है। वसिष्ठमत से नक्षत्रशूल-(मु.चि.या.प्र. श्लोक १० की टीका में)
"पुरुहितदिशं पुरन्दरः, नेयाद्याभ्यदिशं त्वजाविधिष्ण्ये ।
ज्वलनाप्यदिशं पितामहः, शूलाख्यान्यथ सौम्यमर्यंमः ॥ अन्वय - पुरन्दरः (इन्द्रनक्षत्रे = ज्येष्ठायाम्) पुरुहूतदिशं (इन्द्रदिशं = पूर्वदिशं) अजाङ्घिधिष्ण्ये (पूर्वाभाद्रपदायाम्) याम्यदिशं (दक्षिणदिशं) पितामहः (ब्रह्मनक्षत्रे = रोहिण्याम्) ज्वलनाप्यदिशं (पश्चिमादिशं) अर्यमः (उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रे) सौम्यम् (उत्तरदिशम्) न इयात् (गच्छेत्) तत्तद्दिशि एषु नक्षत्रेषु शूलानि भवन्ति।
अर्थ - ज्येष्ठानक्षत्र में पूर्व की ओर, पू.भा. में दक्षिण की ओर रोहिणी नक्षत्र में पश्चिम की ओर तथा उत्तराफाल्गुनी में उत्तर की ओर शूल रहता है, जो कि नक्षत्रशूल कहा जाता है, अत: उक्त नक्षत्र उक्त दिशा में यात्रा के लिए योग्य नहीं है।
वारनक्षत्रशूलों का फल-(वसिष्ठ)
शूलसंज्ञानि धिष्ण्यानि शूलसंशाश्च वासराः ।
यायिनां मृत्युदाः शीघ्रमथवा चार्थहानिदाः ॥ अन्वय - शूलसंज्ञानी धिष्ण्यानि (पूर्वादिक्रमेण ज्येष्ठापूर्वाभाद्रपदारोहिण्युत्तराफाल्गुनी नक्षत्राणि) शूरलसंज्ञाश्च वासराः (पूर्वगमने सोमशनी, दक्षिणगमने गुरुः पश्चिमगमने रविशुक्रौ उत्तरगमने च भौमबुधौ एते वारा:) यायिनां (यात्राकर्तृणाम्) शीघ्रम मृत्युदाः अथवा मृत्युतुल्यकष्टदाः अथवा अर्थहानिदाः (धननाशकराः) भवन्ति।
अर्थ - पूर्व दिशादि क्रम से ज्येष्ठा, पूर्वाभाद्रपदा, रोहिणी और उत्तराफाल्गुनी ये नक्षत्र तथा पूर्वादिक्रम से (पूर्व दिशा की यात्रा में सोम और शनि, दक्षिण यात्रा में गुरु पश्चिम यात्रा में रवि और शुक्र तथा उत्तर यात्रा में मंगल और बुध) चन्द्रादिवार शूलसंज्ञक है। ये यात्रार्थियों के शीघ्र मृत्युकारक हैं अथवा उनके अर्थ की हानि करते हैं।
छिप कर रह संसार में, देश सबन को वेश । ना काहु से राग कर, ना काहु से द्वेष ॥
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