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मुहूर्तराज ]
[११५ अन्वय - सम्मुखीन: (सम्मुखस्थः) चन्द्रः अर्थलाभाय, दक्षिणश्च सर्वसम्पदे, परन्तु यदि चन्द्रः पश्चिमः पृष्ठदिक्स्थः तदा मृत्युं कुरुते (अथवा मृत्युतुल्यं कष्टं ददाति) वामश्चन्द्रः (वामापार्श्वस्थः चन्द्रः) धनक्षयम् (धनहानि) कुरुते।
अर्थ - प्रयाण में यदि चन्द्र सम्मुख हो इष्ट सिद्धि करता है। दाहिनी बाजू स्थित हो तो सर्व सम्पदा के लिए है, किन्तु पीठ पीछे होने पर चन्द्र मृत्युकारक अथवा मृत्युसदृश अपमान लज्जादि कष्ट प्रदाता है, और बाईं बाजू स्थित चन्द्रमा यात्रार्थी की धन हानि करता है।
सम्मुखचन्द्र की सर्वदोष नाशकता-(मु.प्र.)
करणभगणदोषं वार-संक्रान्ति दोषम् । कुतिथि-कुलिक-दोषं यामयामार्धदोषम् ॥ कुजशनिरविदोषं राहुकेत्वादिदोषम् ।
हरति सकलदोषं चन्द्रमाः सम्मुखस्थः ॥ अर्थ - यदि सम्मुख चन्द्र हो तो वह भद्रादोष, नक्षत्रदोष, वारदोष, संक्रान्तिदोष, कुतिथि दोष, कुलिक दोष, याम एवं यामार्ध दोष, मंगल, शनि एवं रवि से उत्पन्नदोष राहु एवं केतु के दोष इस प्रकार समस्त दोषों को नष्ट करता है।
पुरालयादि प्रवेश में चन्द्र विचार-(ना.चं.)
सम्मुखेन्दुहरद्रव्यं, पृष्ठस्थो मृत्युदायकः ।
तद् ग्राह्यो दक्षिणो वामः पुरालयप्रवेशके ॥ अर्थ - नगर गृह आदि में प्रवेश करते समय प्रवेशकर्ता के सम्मुखस्थदिशा में यदि चन्द्र हो तो वह द्रव्य नाश करता है, पीठ पीछे हो तो मृत्यु अथवा मृत्युतुल्य कष्ट प्रदाता होता है, अत: प्रवेश समय में चन्द्रमा को दाहिनी अथवा बाईं बाजू रखना चाहिए।
तथाच
षड्नन्दे पृष्ठगश्चन्द्रः, पादेऽष्टार्केऽशुभप्रदः ।
सद् दिगीशादिजन्मेषुत्रिकराब्धिषु मस्तके ॥ अर्थ - प्रवेशकर्ता की जन्मराशि से छठा और नवाँ चन्द्रमा उसकी पीठ पर आठवाँ, बारहवाँ उसके पैरों पर रहता है जो कि प्रवेश समय में अशुभप्रद है किन्तु यदि चन्द्रमा १० वाँ, ११ वाँ, सातवाँ, पहला, पाँचवीं, तीसरा, दूसरा या चौथा हो तो वह शुभफलदायी होता है।
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