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[ मुहूर्तराज समस्त ग्रहों का पूर्वादि दिशाओं में विचरण-(ना.चं.)
स्वस्योदथस्य समयात् पूर्वयाम्यादितः क्रमात् ।
संचरन्ति ग्रहाः सर्वे सर्वकाल दिगष्टके ॥ अन्वय - सर्वे ग्रहा: स्वस्योदयस्य समयात् पूर्वयाम्यादितः क्रमात् सर्वकालं दिगष्टके संचरन्ति।
अर्थ - समस्त ग्रह स्वस्व उदय समय से लेकर पूर्व दक्षिण आदि क्रम से सदैव आठों दिशाओं में गति करते हैं। रविचार-(आ.सि.)
रविद्वौं द्वौ पूर्वादौ यामौ रात्र्यन्तयामतः ।
यात्राऽस्मिन् दक्षिणेवामे प्रवेशः पृष्ठगे द्वयम् ॥ अन्वय - रविः (सूर्यः) रात्र्यन्तयामात् (रात्र: चरमप्रहरतः) द्वौ द्वौ यामौ पूर्वादौ (चरति) अस्मिन् (सूर्य) दक्षिणस्थे यात्रा, वामे प्रवेशः पृष्ठगे च सति द्वयम् (यात्राप्रवेशौ) शुभावहम्।
अर्थ - सूर्य रात्रि के अन्तिम प्रहर से दो-दो प्रहरों तक पूर्वादि चारों दिशाओं में विचरण करता है। इसके दाहिनी बाजू रहते यात्रा, बाईं बाजू रहते प्रवेश एवं पीठ पीछे रहते दोनों (यात्रा और प्रवेश) सुखदायी होते हैं।
-रविचार बोधक सारणी
क्र.सं.
दिशाएँ
प्रहर
यात्रा में
प्रवेश में
|
दोनों में
पूर्व में
रात्रि का अन्तिम प्रहर तथा
दिन का प्रथम प्रहर
दक्षिण में
दिन का द्वितीय प्रहर एवं
तृतीय प्रहर
दाहिनी ओर शुभ
बाईं ओर शुभ
पीछे की ओर शुभ
पश्चिम में
दिन का अन्तिम प्रहर तथा
रात्रि का प्रथम प्रहर
उत्तर में
रात्रि का द्वितीय तथा
तृतीय प्रहर
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