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मुहूर्तराज ]
[१०५
पूर्वादिदिशाओं में नक्षत्रवारशूल ज्ञापक सारणी
-वारशूल परिहार ज्ञापक सारणी
दिशाएँ
वार
दिशाएँ
शूल संज्ञक नक्षत्र
शूल संज्ञक वार
वारशुल निवार
वस्तुएँ
ज्येष्ठा
सोम, शनि
पूर्व
सोम
दूध पीकर
उत्तर
मंगल
पश्चिम
रोहिणी
रवि, शुक्र
गुड़ खाकर तिल खाकर
बुध
दक्षिण
दही खाकर
उत्तर
उत्तरा फाल्गुनी
मंगल, बुध
पश्चिम
शुक्र
जौ खाकर
दक्षिण
पूर्वा भाद्रपद
पूर्व
शनि
उड़द खाकर
पश्चिम
रवि
घृत खाकर
वारशूल परिहार (बृहस्पति मत से)
सूर्यवारे घृत प्राश्य, सोमवारे पयस्तथा । गुडमंगारके वारे, बुधवारे तिलानपि ॥ गुरुवारे दधि प्राश्य, शुक्रवारे यवानपि ।
माषान्भुक्ता शनौवारे गच्छंञ्छूलं न दोषभाक् ॥ अर्थ - रविवार को घृत खाकर, सोम को दूध पीकर, मंगल को गुड़ खाकर, गुरु को दही खाकर, शुक्र को जौ खाकर तथा शनि को उड़द खाकर यात्रा करने से वारशूल दोषकारक नहीं होता।
तथा च (बृहस्पति)
. ताम्बूलं चन्दनं मृच्च, पुष्पं दधि घृतं तिलाः ।
वारशूलहराण्य र्काद्दानाद्धारणतोऽदनात् ॥ __ अर्थ - रविवार से शनिवार तक क्रमश: पान (नागरवेल का) चन्दन, मिट्टी फूल, दही, घी और तिल ये वस्तुएँ वारशूल निवारक हैं। इनका दान करने से, इनको खाने से अथवा धारण करने से वारशूल प्रभावी नहीं होता।
लोकमत में भी
रवि ताम्बुल, सोम को दर्पण । (आरीसे में मुख देखकर यात्रा)
घाणां चावो धरणीनन्दन (मंगलवार) ॥
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