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मुहूर्तराज ] सर्वदिग्द्वार नक्षत्र-वसिष्ठ
पुष्यार्काश्विनमैत्राणि, सर्वदिग्द्वारभानि च सर्वदिक्ष्वपि यात्रायां, सर्वकामार्थदानि च
अर्थ - पुष्य, हस्त, अश्विनी और अनुराधा ये चार नक्षत्र सर्वदिग्द्वार संज्ञक नक्षत्र हैं। इनमें चारों दिशाओं में से किसी भी दिशा में की गई यात्रा यात्रार्थी के सर्व मनोरथों की सिद्धि करती है। नारद के मत से भी
. पुष्ये मैत्रे करेऽश्विन्यां सर्वाशागमनं शुभम् । __ अर्थ - पुष्य, अनुराधा, हस्त और अश्विनी इनमें किसी भी दिशा की यात्रा शुभकारी होती है।
इसी प्रकार श्रीपति भी
"हस्त् पुष्यो मैत्रमप्याश्विनं च चत्वार्याहुः सर्वदिग्द्वारभानि" अर्थात् हस्त, पुष्य, अनुराधा और अश्विनी ये चारों नक्षत्र सभी दिशाओं में प्रयाण करने के लिए शुभफलदायी हैं।
काल एवं पाश नामक योग-(मु.चि.या.प्र. श्लो. ३५ वाँ)
कौबेरीतो वैपरीत्येन कालो वारेऽर्काद्ये सम्मुखे तस्य पाशः । रात्रावेतौ वैपरीत्येन गण्यौ यात्रायुद्धे सम्मुखे वर्जनीयौ ॥
अन्वय - कौबेरीत: (उत्तरदिशात:) अर्काद्ये वारे वैपरीत्येन कालः तस्य सम्मुखदिशि तस्य (कालस्य) पाश: च, एतौ (कालपाशयोगौ) रात्रौ वैपरीत्येन (दिवा यस्यां दिशि काल: तस्यां दिशि रात्रौ पाश:, दिवा च यस्यां दिशि पाश: रात्रौ तस्यां दिशि काल:) गण्यौ (एतौ योगौ) यात्रा (यात्राकाले) युद्धे सम्मुखे वर्जनीयौ (त्याज्यौ भवतः) ।
अर्थ - उत्तर दिशा से वाम गति से रवि से लेकर शनि तक क्रमश: काल योग होता है और उस काल की सम्मुखस्थ दिशा में उसका पाश रहता है यथा-रविवार को उत्तर में काल तो उसकी सम्मुख दिशा दक्षिण में सोम को वायव्य में काल तो उसकी सम्मुख दिशा आग्नेयी में पाश इत्यादि। दिन के समय जिस दिशा में काल रात्रि के समय उस दिशा में पाश और दिन के समय जिस दिशा में पाश रात्रि को उस दिशा में काल समझना चाहिए। ये काल और पाश यात्रा एवं युद्ध के सामने की दिशा में अवस्थित हों तो उस दिशा में प्रयाण नहीं करना चाहिए। इनका जाने वाले के (यात्रार्थी एवं युद्धार्थी के) वाम व दक्षिण भाग में रहना शुभ है, फिर भी काल की दाहिनी ओर स्थिति तथा पाश की बाईं ओर स्थिति ही शुभकारिणी होती है।
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