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मुहूर्तराज ]
[७५ अथ सप्तशलाका वेध-(मु.चि.वि.प्र. श्लो. ५७वाँ)
शाक्रेज्ये शतभानिले जलशिवे पौष्णार्यमः वसुद्वीशे
वैश्नसुधांशुभे, हयभगे सार्पानुराधे तथा । हस्तोपान्तिमभे, विधातृविधिभे मूला
___ याम्यमधे कृशानुहरिभे विध्देऽद्रिरेखे मिथः ॥ अन्वय - अद्रिरेखे (चक्र) शाक्रेज्ये, शतभानिले, जयशिवे, पौष्णार्यमः, वसुद्धीशे, वैश्वसुधांशुभे, हयभगे सार्पानुराधे तथा हस्तोपान्तिमभे, विधातृविधिभे, याम्यमधे, कृशानुहरिभे, मिधःविध्दे (भवेत्)।
अर्थ - सप्तशलाका चक्र में ज्येष्ठा और पुष्य, शतभिषा और स्वाती, पूर्वाषाढ़ा और आद्रा, रेवती और उत्तराफाल्गुनी, धनिष्ठा और विशाखा, उत्तराषाढा और मृगशिरा, अश्विनी और पू.फा., आश्लेषा और अनुराधा, हस्त और उत्तराभाद्रपद, रोहिणी और अभिजित्, मूल और पुनर्वसु, चित्रा और पू. भाद्र., भरणी और मघा, कृत्तिका और श्रवण ये नक्षत्र परस्पर विद्ध हैं।
-अथ सप्तशलाका वेध चक्र
कृ.
रो.
म.
आ.
पुन.
पुष्य
आश्ले
मघा
पू.फा.
उ.फा.
हस्त
चित्रा
स्वाती
विशा.
श्र.
अभि.
उ.षा.
पू.षा.
मूल
ज्ये.
अनु.
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