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मुहूर्तराज ]
ग्रह →
स्वराशि
उच्चराशि
नीच राशि
- ग्रहस्वराशि-उच्च-राशि-नीचराशि मूलत्रिकोण राशि ज्ञापक कोष्ठक -
सूर्य
मंगल
शुक्र
शनि
मेष
सिंह
वृष
वृश्चिक
तुला
मेष
१० अं.
तुला
१० अं.
सिंह
चन्द्र
कर्क
वृषभ
३ अं.
वृश्चिक
३ अं.
मूल त्रिकोण
ग्रहों के उच्चत्व और नीचत्व का प्रयोजन
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मकर
२८ अं.
वृषभ
कर्क
२८ अं.
मेष
बुध
मिथुन
कन्या
कन्या
१५ अं.
मीन
१५ अं.
कन्या
गुरु
धनु
मीन
कर्क
५ अं.
मकर
५ अं.
धनु
मीन
२७ अं.
कन्या
२७ अं.
तुला
मकर
कुंभ
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तुला
२० अं.
इक्को जइ उच्चस्थो हवइ गहो किं पुण बे तिन्नी गहा एकोऽपि खेटो यदि तुंगसंस्थः
उन्नई परं कुणइ कुणंति इत्थ संदेहो । उत्कृष्टमौन्नत्यमयं करोति ॥
द्वौ वा त्रयो वा खचरा अथोच्चाः तदा पुनः किं कथनीयमत्र । उच्चैर्नृपः पञ्चभिरर्धचक्री चक्री षडुच्चैर्मुनिभिस्तथार्हत् ॥
त्रिभिर्नीचैर्भवेद्दासः
मेष
२० अं.
कुम्भ
अन्धं दिगम्बरं मूर्ख परपिण्डोपजीविनम् । कुर्यातामतिनीचस्थौ पुरुषं चन्द्रभास्करौ ॥
त्रिभिरुच्चैर्नराधिपः । त्रिभिरस्तमितैर्जडः ॥
राहु
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कन्या
त्रिभिः
स्वस्थानगैर्मन्त्री
अर्थ - यदि एक भी ग्रह उच्चराशीय हो तो वह उस व्यक्ति की परम उन्नति करता है । फिर यदि दो अथवा तीन ग्रह उच्चस्थ हों तो क्या कहना।
मिथुन
धनु
जिसके जन्मकाल में ५ ग्रह उच्च राशि के हों तो वह राजा अथवा अर्धचक्री, यदि छः ग्रह उच्चराशिस्थ हों तो चक्री और ७ ग्रह उच्च राशिगत हों तो वह अर्हत् बनता है।
यदि तीन ग्रह नीचराशिस्थ हों तो वह दास और तीन उच्चराशीय हों तो नराधिप, तीन ग्रह स्वराशि के हों तो मन्त्री और तीन ग्रह अस्त हों तो वह जड़ बनता है।
और भी
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