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[ मुहूर्तराज अर्थ - रवि की लत्ता धननाश, मंगल की मृत्यु करती है। चन्द्र तथा बुध की लत्ता नाश करती है। शनि की लत्ता भी मृत्युकारक है और गुरु लता बन्धु विनाश करती है। राहु की लत्ता भी मृत्यु कारक एवं कार्य विनाश करने वाली होती है। (२) अथ पातदोष- (शी.बो.)
सूर्ययुक्ताच्च नक्षत्रात् पातदोषो विधीयते । मघाऽश्लेषा च चित्रा च सानुराधा च रेवती ॥ श्रवणोऽपि च षट्कोऽयं पातदोषो निगद्यते ।
अश्विनीमवधिं कृत्वा गणयेद् दिनभावधि ॥ अर्थ - सूर्य के महानक्षत्र से मघा, आश्लेषा, चित्रा, अनुराधा, रेवती और श्रवण नक्षत्र जितनवें २ क्रमांक पर हों, अविनी से उतनवें २ क्रमांक के नक्षत्र पातदोष युक्त हुए। इस प्रकार पातदोष से दूषित नक्षत्र यदि लग्न अथवा किसी भी शुभकार्य का नक्षत्र हो तो उस नक्षत्र को शुभकार्य में ग्रहण नहीं करना चाहिए। पातों की संज्ञाएँ
पावकः, पवमानश्च, विकारः, कलहश्च वै ।
मृत्युः क्षयश्च विज्ञेयं पातषट्कस्य लक्षणम् ॥ अर्थ - पावक, पवमान, विकार, कलह, मृत्यु और क्षय ये संज्ञाएँ क्रमशः मघादि पातों की हैं। नारदमत से पात प्रकार -
सूर्यभात् सापित्र्यन्त्यत्वाष्ट्रमित्रोडुविष्णुभे ।
संख्यमा दिनभे तावत् अश्विभात् पातदुष्टभम् ॥ अर्थ - सूर्य नक्षत्र से आश्लेषा, मघा, रेवती, चित्रा, अनुराधा और श्रवण तक गणना करने पर जो संख्या आवे, अश्विनी से उतनवीं संख्या का नक्षत्र पातदोष से दूषित जानना चाहिए। इस विषय से वसिष्ठ भी
रविभादहिपितमित्रत्वाष्ट्रभहरिपौष्णभेषु गणितेषु । साश्विनभादिन्दुयुते तावति वै पतति गणनया पातः ॥ अयमपि पातो दोषश्चण्डीशचण्डाहवयो ज्ञेयः ।
अखिलेषु मंगलेष्वपि वयो यस्माद्विनाशकः कर्तुः ॥ अर्थ - रवि नक्षत्र से आश्लेषा, मघा, अनुराधा, चित्रा, श्रवण और रेवती नक्षत्रों को गिनने पर जितनयीं २ संख्याएँ आवें अश्विनी से उतनवी २ संख्या वाले नक्षत्रों पर पातदोष माना गया है, अर्थात् वे २ नक्षत्र पातदोष से दूषित होते हैं। इसी पात को चण्डीश चण्डायुध संज्ञा से भी व्यवहत किया गया है। इसे समस्त मांगलिक कार्यों में त्यागना चाहिए, क्योंकि यह दोष कार्यकर्ता की मृत्यु करता है अथवा उसे मृत्युसदृश कष्ट भोगने पड़ते हैं।
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