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[ मुहूर्तराज अर्थ - वर - वधू के गुणमेलापक के लिए अष्टकूटों पर विचार किया जाता है। ये राशिकूटभेद संख्या में ८ हैं यथा-वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रहमैत्री, गणमैत्री, भकूट और नाडी। ये कूटभेद उत्तरोतर एक - एक अधिक गुणवाले हैं अर्थात् वर्ण का गुण एक, वश्य गुण २ तारागुण ३ योनिगुण ४ ग्रहमैत्री गुण ५ गणमैत्री गुण ६ भूकूट गुण ७ नाडी गुण ८ हैं।
१. वर्णकूट - (शी.बो.) -
मीनालिकर्कटा विप्राः क्षत्रियोऽजो हरिर्धनुः । शूद्रो युग्मं तुलाकुंभौ, वैश्यः कन्या मृगो वृषः ॥ वरस्य वर्णतोऽधिका, वधून शस्यते बुधैः ॥
अर्थ - मीन वृश्चिक और कर्क राशि का वर्ण विप्र, मेष, सिंह और धनु राशि का वर्ण क्षत्रिय मिथुन, तुला और कुंभ राशि का वर्ण शूद्र तथा कन्या, मकर और वृष राशि का वर्ण वैश्य है। वर के वर्ण से अधिक वर्ण कन्या का होना उचित नहीं।
२. वश्यकूटं - (मु.चि.वि.प्र. २३)
हित्वा मृगेन्द्रं नरराशिवश्याः, सर्वे तथैषां जलजाश्च भक्ष्याः । सर्वेपिसिंहस्य वशे विनालिं, ज्ञेयं नराणां व्यवहारतोऽन्यत् ॥
अर्थ - सिंह राशि के बिना सभी राशियाँ मनुष्य राशि के वशीभूत हैं और जलचर राशियाँ मनुष्य की भक्ष्य हैं। वृश्चिक राशि को छोड़कर सभी राशियाँ सिंह राशि के वश में हैं अन्य सभी राशियों का अर्थात् चतुष्पद राशियों का चतुष्पदों के साथ एवं जलचर राशियों का जलचर राशियों के साथ वश्यभाव मनुष्यों के व्यवहार से जानना चाहिए ।
राशियों की द्विपदादिसंज्ञा - (शी.बो.)
मकरस्य पूर्वभागो मेषसिंहधनुर्वषाः । चतुष्पदाः कीटसंज्ञः कर्कः सर्पश्च वृश्चिकः ॥ तुला च मिथुनं कन्या, पूर्वार्ध धनुषश्च यत् । द्विपदास्तु मृगार्धं तु कुंभमीनौ जलाश्रितौ ॥
__ अर्थ - मकर राशि का पूर्वार्द्ध, मेष, सिंह, धनु और वृष ये चतुष्पद राशियाँ हैं, कर्क राशि कीट है और वृश्चिक सर्प है। तुला, मिथुन, कन्या और धन का पूर्वार्द्ध ये द्विपद हैं। मकर का उत्तरार्ध तथा कुंभ और मीन ये राशियाँ जलचर हैं। वश्य मिलने पर गुण २ होते हैं।
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