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२२ ]
[ मुहूर्तराज
नक्षत्रादि की अन्तिम घटियों की शुभ कार्यों में त्याज्यता -
मासान्ते दिनमेकं तु तिथ्यन्ते घटिकाद्वयम् ।
घटिकानां त्रयं भान्ते शुभे तु सर्वदा त्यजेत् ॥ अर्थ - मास का अन्तिम एक दिन, तिथि के अन्त की दो घड़ियाँ और नक्षत्र के अन्त की तीन घड़ियाँ शुभ कार्यों में सर्वदा छोड़ने योग्य होती हैं। नक्षत्रों की अन्धादि संज्ञाएँ - (मु.चि.न.प्र. श्लो.२२)
अन्धाक्षं वसुपुष्यधातृजलभद्वीशार्यमान्त्याभिधम् , मन्दाक्षं रविविश्वमैत्रजलपाश्लेषाश्विचान्द्रं भवेत् । मध्याक्षं शिवपित्ररजैकचरणत्वाष्टेन्द्रविध्यन्तकम् । स्वक्षं स्वात्यदितिश्रवोदहनभाहिर्बुध्यरक्षोभगम् ॥
अन्वय - वसुपुष्यधातृजलभद्वीशार्यमान्त्यामिधं (एतन्नक्षत्रवृन्दम्) अन्धाक्षम्, रविविश्वमैत्रजलपाश्लेषाश्विचान्द्रं मन्दाक्षं भवेत्। शिवपित्रजैकचरणत्वाष्टेन्द्रविध्यन्तकम् मध्याक्षम् तथा च स्वात्यदिति श्रवोदहनभाहिर्बुध्न्यरक्षोभगम् स्वक्षं (भवति)
फल -
विनष्टार्थस्य लाभोऽन्धे शीघ्रं मन्दे प्रयत्नतः ।
स्याद्रे श्रवणं मध्ये श्रुत्याप्ती न सुलोचने ॥ __ अन्वय - अन्धे (अन्धाक्षे नक्षत्रे) विनष्टार्थस्य शीघ्रं लाभो (भवेत्), मन्दाक्षे प्रयत्ननः वस्तुप्राप्तिः, मध्ये दूरे श्रवणं स्यात् किन्तु सुलोचने (गतस्य वस्तुनः) श्रुत्याप्ती (अपि) न (भवति)। ___ अर्थ - धनिष्ठा, पुष्य, रोहिणी, पूर्वाषाढा, विशाखा, उत्तराफाल्गुनी और रेवती ये नक्षत्र अन्धाक्ष हैं अर्थात् अन्धसंज्ञक हैं। हस्त, उत्तराषाढा, अनुराधा, शतभिषा, आश्लेषा, अश्विनी और मृगशिरा ये नक्षत्र मन्दाक्ष हैं। आर्द्रा, मघा, पूर्वाभाद्रपद, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित् और भरणी, इन नक्षत्रों को मध्याक्ष कहते हैं और स्वाती, पुनर्वसु, श्रवण कृत्तिका, उत्तराभाद्रपदा, मूल और पूर्वाफाल्गुनी ये नक्षत्र सुलोचन हैं।
अन्धसंज्ञक नक्षत्र में खोई हुई वस्तु शीघ्र मिले, मन्दाक्ष में प्रयत्न करने से मिले, मध्याक्ष, नक्षत्र में विनष्ट वस्तु दूर सुनने में आवे कि अमुक स्थान पर वस्तु है किन्तु सुलोचन नक्षत्र में वस्तु न सुनने में आवे और न ही मिले।
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