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[ मुहूर्तराज
अथ अमृतिसिद्धि योग सारणी वार नाम नक्षत्र नाम
रवि
सोम मंगल
योग अमृतसिद्धि अमृतसिद्धि अमृतसिद्धि अमृतसिद्धि अमृतसिद्धि अमृतसिद्धि अमृतसिद्धि
हस्त मृगशिरा अश्विनी अनुराधा पुष्य रेवती रोहिणी
बुध
गुरु
शनि
हर्ष प्रकाश में भी इस योग की प्रशंसा
भद्रासंवर्तकाद्यैश्चेत् सर्वदुष्टऽपि वासरे ।
योगोऽस्त्यमृतसिद्धायाख्यः सर्वदोषक्षयस्तदा ॥ अन्वय - चेत् भद्रासंवर्तकाद्यैः सर्वदुष्टे वासरे अपि अमृत सिद्धायाख्य: योगः अस्ति तदा (तस्मिन् योगे) सर्वदोषक्षयः (भवति)।
अर्थ - भद्रा संवर्तक आदि कुयोगों से सम्पूर्ण दिन के दूषित हो जाने पर भी यदि उस दिन अमृतासिद्धि योग हो तो समस्त दोषों का निवारण हो जाता है। क्रकचयोग - नारद मत से
त्रयोदश स्युर्मिलने संख्यायास्तिथिवारयोः ।
क्रकचो नाम योगोऽयं मंगलेष्वतिगर्हितः ॥ अर्थ - तिथि एवं वार की क्रम संख्याओं का योग करने पर यदि १३ संख्या योग हो तो उस दिन क्रकच नामक दुर्योग जानना चाहिए। यह योग समस्त मांगलिक कार्यों में निन्दित माना गया है।
उदाहरण - पष्ठी तिथि को यदि शनिवार है, तो षष्ठी के अंक ६ हुए और शनि के क्रमांक रवि से गिनने पर ७ हुए। इन दोनों का योग १३ हुआ। अतः उस दिन क्रकच योग बना।
अथ क्रकच योग ज्ञापक चक्र तिथियाँ → | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ | योग बना
वार-→ | शनि ७ | शुक्र ६ | गुरु ५ | बुध ४ | मंगल ३ | सोम २ | रवि १ वार-→ | १३ | १३ | १३ | १३ | १३ । १३ ।
क्रकच
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