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मुहूर्तराज ]
[४१ कंटक एवं उपकुलिक योग - (आ.सि.)
कंटकोऽपि दिनाष्टांशे स्वारान्मंगलावधौ ।
बृहस्पत्यवधौ चोपकुलिकस्त्यज्यते परैः ॥ अन्वय - स्ववारान्मंगलावधौ (गणनया) दिनाष्टांशे (अर्धप्रहरे) कंटक: अपि (स्यात्) तथैव स्ववाराद् बृहस्पत्यवधौ च गणनया) उपकुलिकः (योगः) भवति। (अमू योगौ) परैः (शुभकृत्ये) त्यज्यते।
अर्थ - जिस दिन जो वार हो उससे मंगल तक गिनने पर जो क्रमसंख्या आवे, उस क्रमसंख्या का उस दिन का अर्धप्रहर कंटक नाम कृयोग युक्त होता है। और इष्टवार से बृहस्पति तक गिनने पर प्राप्त क्रमसंख्या का अर्धप्रहर उस दिन उपकुलिक नामक कुयोग से युक्त होता है। अर्धप्रहर = १॥ घंटा
अथ कंटक एवं उपकुलिक कुयोग ज्ञापक सारणी
वार
रवि | सोम | मंगल | बुध |
गुरु ।
शुक्र | शनि
कंटक योग से युक्त अर्धप्रहर
| उपकुलिक योग से युक्त अर्धप्रहर | ५
| ४
|
३
। २
।
१
।
७
।
कुलिकयोग -
कुलिको द्विघ्नशन्यन्तमिते त्याज्यः स्ववारतः । मुहूर्तेऽह्नि निशि व्येके भागः पञ्चदशस्तु सः ॥
अन्वय - स्ववारत: द्विघ्नशन्यमन्तमिते मुहूर्ते अन्हि व्येके मुहूर्ते निशि कुलिकः (एतन्नामा योगः) भवति। दिनस्य पञ्चदशः भागः मुहूर्तः कथ्यते।
अर्थ - इष्ट दिन के वार से शनिवार तक गणना करने पर प्राप्त क्रमांक को दूना करने पर जो अंक प्राप्त हो उस दिन उस संख्या का मुहूर्त उस दिन के समय में कुलिक योग से युक्त होता है और रात्रि में उस कुलिक मुहूर्त की क्रमसंख्या में से एक घटाने पर जो अंक आवे उस अंक क्रम का मुहूर्त कुलिक से दूषित जानना चाहिये।
उदाहरण- रविवार के दिन यदि कुलिक ज्ञात करना हो तो रवि से शनि तक गणना की गई तब क्रमांक ७ आया इसे २ से गुणा किया तो ७X २ = १४ हुए तो रविवार को १४वाँ मुहूर्त कलिक युक्त हुआ, यह दिन का कुलिक हुआ और उस दिन रात में १४-१ = १३ तेरहवाँ मुहूर्त कुलिकयुक्त हुआ। मुहूर्त प्रमाण २ घटी का होता है।
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