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मुहूर्तराज ]
राजयोग (सर्वत्र शुभद ) - आ. सि.
राजयोगो भरण्याद्यैद्वर्यन्तरैर्भे शुभावहः । भद्रातृतीयाराकासु
कुजज्ञभृगुभानुषु ॥
अन्वय - भरण्याद्यैद्वर्यन्तरितै भै: ( नक्षत्रैः) भद्रतृतीयाराकासु + कुजज्ञभृगुभानुष सत्सु शुभावहो राजारव्ययोगः ।
अर्थ - भरणी से लेकर दो-दो नक्षत्रों के अन्तर से आने वाले नक्षत्रों में से ( भरणी, मृगशिर, पुष्य ) इस प्रकार किसी एक नक्षत्र के, भद्रातिथि, तृतीया और पूर्णिमा में से किसी एक तिथि के, मंगल, बुध, शुक्र और सूर्य इनमें से किसी एक वार के इन तीनों (न+वार + ति) के एक साथ संयुक्त होने पर राजयोग बनता है, जो कि शुभफलद है । इस योग की भी कुमार योग की ही भाँति कुछ विशेषता है यथा
अयं लघुक्षिप्राभांगल्यधर्मपौष्टिक भूषणक्षेत्रारम्भादिषु विशिष्य श्रेष्ठः अयमपि कुयोगेषु सत्सु न ग्राह्यः तेन रवौ सप्तमी द्वादशी वा, भरणी च, भौमे धनिष्ठा, बुधे भरणी धनिष्ठा वा, शुक्रे द्वितीया सप्तमी वा पुष्यश्च एते राजयोगाः अपि नेष्टाः, यतः संवर्तकर्कवज्रमुसुलोत्पातकाणादियोगोत्पत्तेः ।
इति लग्नप्रकरणे - श्री हरिभद्रसूरि :
यह योग विशेष कर मांगलिक कार्य, धार्मिक कार्य, पौष्टिक कार्य और अलंकार धारणादि कार्य करने के लिए श्रेष्ठ है । परन्तु यह योग भी तभी गाह्य है, जबकि उस दिन कोई अन्य विरुद्धयोग न बनता हो, यथा - रविवार को सप्तमी अथवा द्वादशी और भरणी के, मंगलवार को धनिष्ठा के बुधवार को भरणी अथवा धनिष्ठा के, और शुक्रवार को द्वितीया अथवा सप्तमी और पुष्य होने पर संवर्तक, कर्क, वज्र, मुसल, उत्पात एवं काणादि योग उत्पन्न होते हैं। ऐसा लग्नप्रकरण में हरिभद्रसूरिजी का मत है ।
अनेक दोषापवादभूत रवियोग (मु.चि. शु.प्र. श्लो. २७)
सूर्यभाद् वेदगोतर्कदिग्विश्वनखसंमिते । चन्द्रर्क्षे रवियोगाः स्युर्दोषसङ्घविनाशकाः ॥
अन्वय - सूर्यनक्षत्राद् वेदगोतर्कदिग्विश्वनखसंमिते चन्द्रर्क्षे ( दिननक्षत्रे) सति दोषसंघविनाशकाः रवियोगाः
स्युः ।
अर्थ - जिस नक्षत्र पर सूर्य हो उस नक्षत्र से चन्द्र नक्षत्र अर्थात् दिन नक्षत्र तक की गणना करने पर यदि चन्द्र नक्षत्र चौथा, नवां, छठा, दसवां, तेरहवाँ और बीसवाँ हो तो रवियोग बनता है। यह योग अनेक दोष समूहों का विनाश करता है।
तिथियों के नाम पूर्णिमा, तृतीया, द्वितीया सप्तमी, द्वादशी, इनमें से किसी भी तिथि के
साथ
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- अथ राजयोग ज्ञापक सारणी
वार नाम
रवि, मंगल, बुध, शुक्र इनमें से किसी भी
वार के साथ
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नक्षत्र नाम
भरणी मृगशिरा, पुष्य, पू. फा., चित्रा, अनुराधा पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा और उत्तरा भाद्रपद इन नक्षत्रों में से किसी भी एक नक्षत्र के साथ
(राजयोग )
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