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५२ ]
[ मुहूर्तराज
अथ पुरुष स्त्री घाताख्य चन्द्र ज्ञापक सारणी
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पुरुष स्त्री राशियाँ
कु. | ११
मी. १२
१
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२
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३
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४
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५
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६
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७
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८
। ९
। १० ।
पुरुष घातचन्द्र
कन्या | कुं. |
सिं. | म. | मि.
ध. |
वृ. | मी. | सिं. |
ध.
कुं.
ori | ri
स्त्री घातचन्द्र
११
१०
|
म.
कन्या |
वृ.
स्त्री पुरुष के लिए चन्द्र बल की कुछ विशेषता
पाणिपीडनविधेरनन्तरं, भर्तुरेव बलमैन्दवादिकम् ।
चिन्तनीयमिह योषितां क्वचिन्नष्टमंगलमृते मनीषिभिः ॥ अर्थ - कर्मभेद से स्त्रियों एवं पुरुषों के चन्द्रबल के विषय में ऐसा कहा गया है कि विवाह, गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तादि संस्कारों में पुरुष के (पति के) चन्द्रबल को एवं पत्नी के भी चन्द्रबल को देखना चाहिये, लेकिन स्त्रियों के वस्त्राभूषण धारण में भर्ता का ही (पति का ही) चन्द्रबल ग्रहण करना चाहिए। जब पति की मृत्यु हो जाय तब फिर स्त्री का ही चन्द्रबल ग्रहण होता है, इसी आशय को लेकर कहा गया है “पाणिपीडनविधे:"।
राजमार्तण्ड में भी
विवाहकार्य कुसुम प्रतिष्ठा, गर्भप्रतिष्ठा, वनिताविशुद्धौ ।
अन्यानि कार्याणि धवस्य शुद्धौ पत्यौ विहीने प्रमदात्मशुद्धध्या ॥ अर्थ - विवाह कार्य, गर्धाधान (कुसुम प्रतिष्ठा) गर्भ प्रतिष्ठा (सीमन्तादि संस्कार) आदि कार्यों में स्त्री की भी चन्द्र शुद्धि (पुरुष चन्द्र शुद्धि के साथ साथ) देखनी चाहिए। किन्तु अन्य कार्यों में पति की ही चन्द्र शुद्धि देखी जाती है, परन्तु पति की मृत्यु के बाद स्त्री की ही केवल चन्द्र शुद्धि को देखना चाहिये। जन्मराशि नक्षत्रादि के अज्ञान में उसके जानने का उपाय- वशिष्ठ
. अज्ञातजन्मनां नृणां नामभं परिकल्प्यताम् ।
तेनैव चिन्तयेत्सर्वम् राशिकूटादि जन्मवत् ॥
अर्थ - यदि जन्मराशि वा जन्मनक्षत्रादि का पता न हो तो ऐसी स्थिति में नामराशि की कल्पना से ही विवाह के पूर्व वरवधू का गुण मेलापक देखना चाहिये।
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