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मुहूर्तराज ]
[५५ अथ तारा बल ज्ञान -
स्वजन्मनक्षत्राद् त्रिरावृत्तितः (आवृत्तित्रयेण) तारा स्यात् अर्थात् स्वकीयजन्मनक्षत्राद् दिननक्षत्रे गणिते नवभिभक्ते तिस्र आवृत्तयो भवन्ति। अवशिष्ट तारायाः शुभाशुभं वाच्यम्।
जिस दिन की तारा ज्ञात करनी हो उस दिन के चन्द्रनक्षत्र तक व्यक्ति के जन्म नक्षत्र से गिनना चाहिए यदि संख्या १ से ९ तक हो तो उसी क्रम की ९ ताराएँ हुईं और उस दिन जो क्रमांक आवे, उस क्रमांक की तारा उस अमुक व्यक्ति के लिए है। यदि ९ से अधिक संख्या गिनने पर आवे तो उसमें नौ का भाग दे देना चाहिए शेषांक तारा क्रमांक है। इस प्रकार ये ताराएँ तीन आवृत्तियों से युक्त होती हैं। अर्थात् ताराओं की तीन आवृत्तियाँ हैं। ताराओं के नाम – (मु.चि.गोच. प्र. श्लो. १२ वाँ)
जन्माख्यसंपद्विपदा क्षेमप्रत्यरिसाधका; ।
वध मैत्रातिमैत्राः स्युस्तारा नामसदृक्फलाः ॥ अर्थ - जन्म, संपद, विपद्, क्षेम, प्रत्यरि, साधक, वध, मैत्र, अतिमैत्र इस प्रकार ताराओं के नाम हैं। ये ताराएँ स्वनामतुल्य ही फल देती है। विपद् प्रत्यरि और वध अर्थात् तीसरी पाँचवी और सातवी तारा अशुभ है, शेष शुभ हैं। जन्म तारा की शुभाशुभता
यात्रायुद्धविवाहेषु जन्मतारा न शोभना।
शुभान्यशुभकार्येषु प्रवेशे च विशेषतः॥ अर्थ - यात्रा, युद्ध और विवाहकर्म में जन्मतारा श्रेष्ठ नहीं मानी जाती। अन्य सभी शुभकार्यों में प्रथम (जन्म) तारा शुभ है। नारद मत में
"कृष्णे बलवती तारा शुक्ले पक्षे बली शशी" अर्थात् कृष्ण पक्ष में तारा बलवती है और शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा। तारा के विषय में रत्नमाला में
शक्ले पक्षे शीतरश्मिर्बलीयान, न प्राधान्यं तारकायास्तु तत्र । शक्त्या युक्त विद्यमानेऽपि कान्ते, न स्वातन्त्र्यं योषितः क्वापि हष्टम् ॥ न खलु बहलपक्षे शीतरश्मेः प्रभावः, कथितमिह हि तारावीर्यमार्यैः प्रधानम् । अति विकलशरीरे प्रेयसि प्रोषिते वा, प्रभवति खलु कर्तुं सर्वकार्याणि योषा ॥
अर्थ - शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा बलयुक्त रहता है, उस समय ताराबल की प्रधानता नहीं जैसे कि पति के विद्यमान एवं शक्तिशाली रहते कहीं पर भी स्त्री की प्रधानता नहीं होती, किन्तु कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा का प्रभाव नहीं होकर तारा की शक्ति प्रधान होती है, ऐसा आचार्यों का मत है, जैसे कि पति के शक्तिहीन होने अथवा प्रवासी होने पर सभी कार्यों को स्त्री ही करती है।
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