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[ मुहूर्तराज अन्वय - जन्मस्थे चन्द्रे क्षौरे (क्षौरकायें) रोगी, गृहे (गृहप्रवेशे) भंगः (हानिः) अथवा (गृहस्य कस्यचिद् भागस्य पतनम्) यात्रायां निर्धनो भवेत्, विवाहे नारी विधवा स्यात्, युद्धे मरणं भवेत्।
अर्थ - जन्मस्थ अर्थात् जन्मराशि स्थित (विशेषत: जन्मनक्षत्र पर स्थित) चन्द्र हो तो उस दिन यात्रा, युद्ध, विवाह, क्षौर, गृह प्रवेश न करें, क्योंकि क्षौर कराने पर रोग हो, गृह प्रवेश करने पर भंग अर्थात् हानि अथवा गृह के किसी भाग का पात हो, विवाह में नारी विधवा हो और युद्ध में मरण होवे।
सभी कार्यों में चन्द्रबल की विशेषता-(आ.टी.)
लग्नं देहः, षट्कवर्गोऽङ्गकानि, प्राणश्चन्द्रो धातवः खेचराश्च । प्राणे नष्टे देहधात्वंगनाशो यत्नेनातः चन्द्रवीर्यम् प्रकल्प्यम् ॥ सर्वत्रामृतरश्मेः बलं प्रकल्प्यम् अन्यखेटजं पश्चात् । चिन्त्यं यतः शशांके बलिनि समस्ता ग्रहाः सबलाः ॥
अन्वय - लग्नं देहः (कथ्यते) षटकवर्गः (होराद्रेष्काणादीनि) अङ्गकानि (करचरणादीनि) चन्द्रः प्राण: अन्ये खेचरा: (ग्रहाः) च घातवः (शरीरे रस रक्तादम:) प्राणे नष्टे (प्राणेषु शरीराद् गतेषु अथवा प्राणेषु निर्बलेषु जातेषु) देहधात्वंगनाशः (भवत्येव) अत: यत्नेन (यत्नपूर्वकम्) चन्द्रवीर्यम् (प्राणतुल्य चन्द्रबलम्) अवश्यमेव चिन्तनीयं भवति।
सर्वत्र प्रथमत: अमृतरश्मेः (चन्द्रस्य) एवं बलं प्रकल्प्यम् (विचार्यम्) अन्यखेटजं (अन्य ग्रहाणां बलं) पश्चात् (चन्द्रबलस्य पश्चात्) चिन्त्यम् (विचारणीयम्) यतः शशांके (चन्द्रमसि) बलिनि (बलयुक्ते) शुभस्थानेषु स्थिते, शुभग्रहै: वीक्षिते, रवोच्चमित्रराशिषु स्थिते समस्ताः (अन्य सर्वे) ग्रहा: बलिनः भवन्ति।
अर्थ - लग्न ही शरीर है, होरादि षड्वर्ग हाथ पैर आदि अंग हैं, चन्द्र प्राण हैं और अन्य ग्रह रस रक्तादिक शरीर धातुएँ हैं। यदि प्राण नष्ट हों या निर्बल हों तो देह धातु एवं अंग सभी नष्ट हो जाते हैं अथवा क्षीण हो जाते हैं अत: यत्नपूर्वक प्राणतुल्य चन्द्र की शक्ति का प्रथम विचार करना चाहिए। और भी -
सभी स्थानों पर सभी कार्यों में प्रथम चन्द्र बल का फिर अन्य ग्रहों के बल का विचार करना चाहिए, क्योंकि चन्द्रमा के बलवान रहने पर ही सभी ग्रह बलवान् माने जाते हैं यथा प्राणों से शरीर की धातुएँ एवं अंगादिक ।
इति चन्द्र विमर्श:
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