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मुहूर्तराज ]
[४३ उत्पातमृत्यु, काण और सिद्धि योग- (मु. चि. शु. प्र. श्लो.)
द्वीशात्तोयाद्वासवात्पौष्णभाच्च ,
ब्राह्मात्युष्यादर्यमांद्युगक्षैः । स्यादुत्पातो मृत्युकाणौ च सिद्धिरिऽर्काद्ये तत्फलं नामतुल्यम् अन्वय - अर्काद्येवारे (रविवारादिषु क्रमश: द्वीशात् तोयात् वासवान् पौष्णभात् ब्राह्मात् पुष्यात् अर्यमाद युगक्षैः सद्भिः क्रमात् उत्पात: मृत्युकाणौ सिद्धिः च (एते योगा:) स्यात्।
अर्थ - रविवार को विशाखा से लेकर चार नक्षत्रों के, सोमवार को पूर्वाषाढ़ा से लेकर चार नक्षत्रों के, मंगल को धनिष्ठादि चार नक्षत्रों के, बुधवार को रेवती आदि चार नक्षत्रों, गुरुवार को रोहिणी आदि चार नक्षत्रों के, शुक्र को पुष्यादि चार नक्षत्रों के और शनिवार को उत्तरा फाल्गुन आदि चार नक्षत्रों के योग होने पर क्रमश: उत्पात, मृत्यु, काण तथा सिद्धि संज्ञक योग होते हैं, जनके फल उनके नाम के सदृश ही होते हैं। इन योगों को सरलता से ज्ञात करने के लिए आनन्दादियोग सारणी को देखिए। दुष्टयोगों की भी देश विदेश भेद से अदुष्टता- (मु. चि. शु. प्र. श्लो. ३१)
कुयोगास्तिथिवारोत्याः, तिथिभोत्था भवारजाः । हूणबंगखशेष्वेव
वास्त्रितजास्तथा ॥ अन्वय - तिथिवारोत्था: (क्रकचादि कुयोगा:) तिथिभोत्थाः (अनुराधा द्वितीयायाम् आदि योगा:) भवारजाः (वारयोगेन दग्ध नक्षत्रादि योगा:) तथा त्रितजयाः (तिथिवारनक्षत्रयोगसंभवा: “हस्तार्क” पञ्चमी तिथौ” योगा:) हूणबंगखशेषु एवं वाः ।
अर्थ - तिथि एवं वार योग से होने वाले क्रकचादि; तिथि एवं नक्षत्र योग से होने वाले द्वितीया को अनुराधादि, नक्षत्र एवं वार योग से होने वाले दग्धनक्षत्रादि एवं तिथि वार और नक्षत्र इन तीनों के योग से होने वाले हस्तार्क पञ्चमी आदि कुयोग हूण (मंगोलिय) बंगाल और रवश (नेपाल) इन देशों में त्यागने चाहिए अन्यत्र नहीं। प्रत्युत्त अन्य देशों में तो ये योग शुभफलदायी हैं। यथा
नारद मत से
तिथिवारोद्भवाः नेष्टा, योगा वारक्षसंभवाः ।
हूणबंगरवशेभ्योऽन्यदेशेष्वेते शुभप्रदाः ॥ अर्थात् तिथि वार से, वार नक्षत्र से उत्पन्न नेष्ट योग हूण (मंगोलिया) बंगाल और नेपाल इन देशों से अतिरिक्त देशों में तो शुभफलदायी होते हैं। व्यतिपातादि कुयोग भी मध्यान्ह के बाद दोषदायी नहीं होते-- (आ.सि.टी.)
विष्टयामंगारके चैव, व्यातिपातेऽथ वैधृते । प्रत्यरौजन्मनक्षत्रे मध्याह्नात् परतः शुभम् ॥
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