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वष
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कर्क
मुहूर्तराज ]
[२५ - राशि - द्विपदादिसंज्ञा - वर्ण - वश्य - बोधक सारणी - क्र.सं. राशियाँ ___ द्विपदादि संज्ञा | वर्ण । ____संज्ञाओं वश्यता मेष चतुष्पद
क्षत्रिय नर राशि वश्य चतुष्पद
वैश्य नर राशि वश्य मिथुन द्विपद
शूद्र परस्परसमता, सिंह के विना सर्व वश्य
विष नर राशि भक्ष्य चतुष्पद
क्षत्रिय वृश्चिक को छोड़कर सभी वश्य कन्या द्विपद
वैश्य सिंह के बिना सर्व राशियाँ वश्य तुला . द्विपद
शूद्र सिंह के बिना सर्व राशियाँ वश्य वृश्चिक
सिंह के वश्य नहीं। धनु - पूर्वार्द्ध उत्तरार्ध - चतुष्पद क्षत्रिय पूर्वार्द्ध के वश्य सिंह को छोड़कर उत्तरार्ध
नर राशि वश्य। मकर
पूर्वार्द्ध - चतुष्पद वैश्य नर राशि भक्ष्य (उत्तरार्ध) नर राशि वश्य उत्तरार्ध - जलचर
(पूर्वार्द्ध) जलचर
नर राशियों की भक्ष्य मीन जलचर
नर राशियों की भक्ष्य
कीट
सिंह
सर्प
विप
-
द्विपद
3
३. ताराकूटम् - (मु.चि.वि.प्र.श्लो. २४)
कन्याद् वरमं यावत्कन्याभं वरभादपि ।
गणयेन्नवहच्छेषे त्रीष्वद्रिभमसत्स्मृतम् ॥ अन्वय - कन्यात् (कन्यानक्षत्रात्) वरमं यावत् (तथा च) वरभात् अपि कन्यानक्षत्रं यावत् गणयेत्। (ततः विशिष्टेऽके) नवहृच्छेषे (नवभिर्भक्ते यदवशिष्टं तत्) त्रीष्वद्रिभम् (यदि स्यात् तत्) असत् स्मृतम्।। __अर्थ - कन्या के जन्मनक्षत्र से वर के जन्मनक्षत्र तक और वर के जन्म नक्षत्र से कन्या के जन्म नक्षत्र तक गिनें। इस प्रकार जो अंक आवे उसमें नौ का भाग दें जो शेष अंक बचें वे यदि ३, ५ और ७ हों तो अशुभ और यदि १, २, ४, ६, ८, ९ रहें तो शुभ हैं। यदि एक योग में ९ का भाग देने पर शुभ फलद शेष हो और दूसरे योग में ९ का भाग देने पर यदि अशुभफलद अंक शेष रहे तो मध्यम मेलापक जानना चाहिए। शुभमेलापक के गुण ३ मध्यम का १॥ डेढ़ और अशुभ का गुण ० होता है। ४. योनिकूट - (मु.चि.वि.प्र. श्लो. २५ और २६ वाँ)
अश्विन्यम्बुपयोहयो निगदितः, स्वात्यर्कयोः कासरः, सिंहो वस्वजपाद्भयोः समुदितो याम्यान्तयोः कुंजरः।
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