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मुहूर्तराज ]
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-नाडी बोधक सारणी
नाडी नाम
नक्षत्र नाम एक (आद्य नाडी) अश्विनी आद्रा
उ.फा. हस्त ज्येष्ठा | मूल | शतभिषा पू.भा. मध्य नाड़ी भरणी । मृगशिरा पुष्य पू.फा. चित्रा | अनुराधा
धनिष्ठा उ.भा. अपर (अन्त्य) नाड़ी | कृतिका | रोहिणी | आश्लेषा| मघा | स्वाती विशाखा | उ.षा.| श्रवण | रेवती
नाडीफल-वराहमत से
आद्यैकनाडी कुरुते वियोगम्,
मध्याख्यनाड्यामुभयोर्विनाशः। अन्त्या च वैधव्यमतीवदुःखम्,
तस्माच्च तिस्त्रः परिवर्जनीयाः॥
अर्थ - वर-वधू दोनों के नक्षत्र यदि आद्यनाडीय हों तो उन्हें वियोग सन्ताप रहता है। दोनों के नक्षत्र यदि मध्यनाडी के हों तो दोनों का विनाश करते हैं और अन्तिम नाडी के नक्षत्रों के होने पर वैधव्य दु:ख भोगना पड़ता है। अत: वर-वधू के नक्षत्रों की नाडी समानता वर्ण्य है। अर्थात् वर-वधू के जन्म नक्षत्रों की नाडी एक (समान) नहीं होनी चाहिए भिन्न २ नाडी ही शुभदा होती है। नाडी कूट के गुण ८ हैं, जो कि दम्पत्ति की विभिन्न नाडी होने पर ही माने गये हैं। प्राचीनाचार्य सम्मत वर्गकूट- (मु. चि. वि. प्र. श्लो. ३६ वाँ)
अकचटतपयशवर्गाः खगेशमार्जारसिंहशुनाम् ।
साखमगावीनां निजपञ्चमवैरिणामष्टौ ॥ अन्वय - निजपञ्चमवैरिणाम् खगेशमार्जारसिंह शुनाम्, सखुमृगावीनाम् अकचटतपयशवर्गाः (अवर्ग-कवर्ग-चवर्ग-टवर्ग-तवर्ग-पवर्ग-यवर्ग-शवर्गतिसंज्ञकाः) अष्टौ भवन्ति ।
अर्थ - अवर्ग (समस्तस्वर) कवर्ग ( क ख ग घ ङ) चवर्ग (च छ ज झ ञ) टवर्ग (ट ठ ड ढ ण) तवर्ग (त थ द ध न) पवर्ग (प फ ब भ म) यवर्ग (य र ल व) शवर्ग (श ष स ह) इन समस्त अक्षरों को आठ वर्गों में बांटा गया है । इन वर्गों के स्वामी क्रमशः गरुड़, बिलाव, सिंह, कुत्ता, सर्प, चूहा, मृग, भेड़ ये हैं जो कि अपने से पाँचवे के शत्रु हैं । यथा - गरुड़-सर्प, मार्जार-मूषक, सिंह-मृग, श्वान-भेड़, सर्प-गरुड़, ये परस्पर वैरी हैं। यदि स्त्री-पुरुष के जन्म-नक्षत्र भक्ष्य और भक्षक वर्ग के हों तो शुभ नहीं हैं। यदि समान वर्ग अथवा शत्रु भिन्न वर्ग दम्पत्ति के जन्म-नक्षत्रों के हों तो शुभकारक हैं। यह वर्गकूट प्राचीन विद्वानों के मत से मान्यता प्राप्त हैं। यह वर्गकूट स्वामी सेवक संबंध में भी विचारणीय है।
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