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[ मुहूर्तराज वार प्रवृत्ति-(मुहूर्त प्रकाश कार के मत से) वार प्रवृत्ति सूर्योदय से पूर्व एवं बाद में भी होती है, इस विषय में मुहूर्त प्रकाशकार लिखते हैं
दिनमानं च रात्र्यर्थं बाणेन्दुभ्यां समन्वितम् ।
दिनप्रवृत्तिर्विज्ञेया गर्गलल्लादि भाषिता ॥ अन्वय - दिनमानं, रात्र्यर्थं च बाणेन्दुभ्यां समन्वितम् (क्रियेत तदा यत् घटीपलात्मकं फलं भवेत् तत्समये) गर्गलल्लादिभाषिता दिन प्रवृत्तिः विज्ञेया।
दिनमान की घटीपलों, रात्र्य) की घटीपलों और १५ घटीकाओं को जोड़ने पर जो घटीपलात्मक फल आए, उस समय वार की प्रवृत्ति होती है, ऐसा गर्गलल्लादि आचार्यों का मत है। इस विषय में विशेष ज्ञान के लिए दिनशुद्धि ग्रन्थ में लिखा है
"विच्छिय कुंभाइतिए निसिमुहि, विसधणुहि कक्कितुलिमण्भे । मकमिहुण कन्नसिंहे निसिअन्ते संकमइ वारो ॥" वृश्चिककुंभादित्रितये निशामुखे वृषधनुः कर्कतुलासु मध्ये ।
मकरमिथुनकन्यासिंहे निशान्ते, संक्राम्यति वारः ॥ अर्थ - वृश्चिक, कुंभ, मीन और मेष इन चार संक्रान्तियों में रात्रि के प्रारम्भ होते ही वृष, धनु, कर्क और तुला इन चार संक्रान्तियों में रात्रि के मध्य में और मकर, मिथुन, कन्या और सिंह इन चार संक्रान्तियों में रात्रि के अन्त से वार प्रारम्भ होता है। वारों की कालहोराएँ-(आ.सि.)
होराः पुनरर्कसितज्ञचन्द्रशनिजीवभूमिपुत्राणाम् ।
सार्धघटीद्वयमानाः स्ववारतस्तास्तु पुण्यफलाः ॥ अन्वय - होराः सार्धघटीद्वयमानाः (भवन्ति) पुनर् अर्कसितज्ञचन्द्रशनिगुरुभूमिपुत्राणाम् (एवं क्रमेण भवन्ति) तास्तु स्ववारत: पुण्यफला: भवन्ति।
अर्थ - होरा (कालहोरा) का मान २॥ घटी अर्थात् १ घंटे का है। ये होराएँ रवि, शुक्र, बुध, चन्द्र, शनि, गुरु और मंगल की इस क्रम से प्रारम्भ होती हैं। जिस दिन जो वार हो उस दिन सूर्योदय से १ घंटा तक उसी वार की होरा रहती है, फिर उसके बाद उस वार से छठे वार की होरा आती है, इस प्रकार अहोरात्र (दिन और रात्रि) में कुल २४ कालहोराएँ होती हैं। जिस दिन जो वार हो उस दिन प्रथम होरा उसी वार की हुई अब उस वार में जिन-जिन कार्यों को करने का विधान हो वे कार्य उन-उन वारों की अपनी स्वयं की होरा में करने पर अवश्य ही सिद्ध होते हैं। होरा का प्रयोजन-(य.व. में)
यस्य ग्रहस्य वारे यत् किञ्चित्कर्म प्रकीर्तितम् । तत्तस्य कालहोरायां पूर्णं स्यात्तूर्णमेव हि ॥
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