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मुहूर्तराज ]
मिश्र नक्षत्र तथा उनमें करणीय कार्य (मु. चि. न. प्र. श्लोक ५ )
विशाखाग्नेयभे सौम्यो मिश्रं साधारणं स्मृतम् । तत्राग्निकार्यं मिश्रं च वृषोत्सर्गादि सिध्यति ॥
अन्वय - विशाखाग्नेयभे सौभ्यः (बुधवारः) च मिश्रं साधारणं वा स्मृतम् । तत्र अग्निकार्यं मिश्रं वृषोत्सर्गादि च सिध्यति ।
अर्थ - विशाखा, कृत्रिका ये नक्षत्र एवं बुधवार ये मिश्र तथा साधारण संज्ञक हैं। इनमें अग्निहोत्र लेना, अन्य नक्षत्रोक्तकर्म वृषोत्सर्ग आदि सिद्ध होते हैं। यहाँ आदि शब्द, से उग्र कर्म भी किये जाएँ तो वे भी सिद्ध होते हैं ।
लघु नक्षत्र एवं उनमें करणीय कार्य (मु.चि.न.प्र. श्लोक ६ )
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हस्ताश्विपुष्याभिजित: क्षिप्रं लघु गुरुस्तथा । तस्मिन् पण्यरतिज्ञानम् भूषाशिल्पकलादिकम् ॥
अन्वय
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• हस्तः अश्विनी, पुष्यः अभिजित् च तथा गुरुः (गुरुवारः) क्षिप्रं लघुवा । तस्मिन् पण्यरतिज्ञानम् भूषा शिल्पकलादिकम्, ( सिध्यति ) ।
अर्थ
हस्तः अश्विनी, पुष्य और अभिजित् ये नक्षत्र तथा गुरुवार ये सभी लघु अथवा क्षिप्र संज्ञ हैं। इनमें वस्तुविक्रय, रतिकर्म (स्त्री समागम ) शास्त्रादि का ज्ञान, भूषणधारण, शिल्पकलादि कर्म सिद्ध होते हैं।
मृदुनक्षत्र एवं उनमें करणीय कार्य (मु.च.न.प्र. श्लोक ७)
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मृगान्त्यचित्रामित्रक्षं मृदु मैत्रं भृगुस्तथा । तत्र गीताम्बरक्रीडामित्रकार्यविभूषणम् ॥
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अन्वय - मृगान्त्यचित्रामित्रर्क्ष तथा भृगुः (शुक्रवारः ) मृदु मैत्रं वा । तत्र गीताम्बरक्रीडामित्रकार्यबिभूषणम् (सिध्यति ) ।
अर्थ - मृगशिर, रेवती, चित्रा, अनुराधा ये नक्षत्र तथा शुक्रवार मृदु अथवा मैत्र संज्ञक हैं। इनमें गीत शिक्षण, वस्त्रधारण क्रीडा, मित्रकर्म, आभूषण आदि कर्म शुभावह हैं ।
तीक्ष्ण नक्षत्र एवं उनके कृत्य (मु.चि.न.प्र. श्लोक ८)
मूलेन्द्रार्द्राऽहिभं सौरिः तीक्ष्णं दारुणसंज्ञकम् । तत्राभिचारघातोप्रभेदाः पशुदमादिकम् ॥
अन्वय - मूलेन्द्रार्द्राऽहिभं सौरिः तीक्ष्णं दारुणसंज्ञकं वा । तत्र अभिचारघातोग्रभेदाः पशुदमादिकम् (सिद्धये)। अर्थ - मूल, ज्येष्ठा, आद्रा, आश्लेषा, ये नक्षत्र एवं शनिवार ये तीक्ष्ण अथवा दारुणसंज्ञक हैं। इनमे अभिचारकर्म, उग्रकर्म, हनन, मित्रों में कलह उत्पादन, हाथी घोड़े आदि पशुओं की शिक्षा (आदि शब्द से बन्धनादि कर्म) सिद्धि को प्राप्त होते हैं ।
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