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मुहूर्तराज ]
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क्रम संख्या
संज्ञा
भद्रा
- मृतसंज्ञक तिथि - दग्धनक्षत्र - ज्ञापक सारणी - वार नाम तिथि संख्या
नक्षत्र रवि नन्दा मृता
भरणी सोम
मृता
चित्रा मंगल नन्दा मृता
उत्तराषाढ़ा जया मृता
धनिष्ठा गुरु
रिक्ता मृता उत्तरा फाल्गुनी भद्रा मृता
ज्येष्ठा शनि
मृता
रेवती
दग्ध दग्ध दग्ध दग्ध
बुध
दग्ध
शुक्र
दग्ध
पूर्णा
क्रूरवारों में करने योग्य कार्य- (यतिवल्लभ में)
लाक्षा-कुसुंभ-मंजिष्ठा-रागे काञ्चनभूषणे ।
शस्तौ भौमरवी लोहोपलत्रपुविधौ शनिः ॥ अन्वय - लाक्षा कुसुंभ मंजिष्ठा रागे, काञ्चनभूषणे भौमरवी शस्तौ (तथा) लोहोपलत्रपुविधौ शनिः (शस्त: मतः)
अर्थ - लाख, कुसुंभ एवं मजीठ के रंग के विषय अर्थात् इनके रंग तैयार करने में और इनके द्वारा रंग कार्य करने में तथा स्वर्णाभूषण के विषय में मंगल और रविवार श्रेष्ठ हैं तथा लोहे पत्थर और सीसे के कार्यों में शनि शुभ है। और भी-मंगल तथा शनिवारों की कुछेक कार्यों में अशुभता
द्रव्यादिदानग्रहणे निधाने, वाणिज्य- सेवा- गुरुराज- योगे ।
कलकृषिस्त्रीशुभकर्मवित्तन्यासौषधेष्वारशनी न शस्तौ ॥ अन्वय - द्रव्यादिदानग्रहणे, निधाने, वाणिज्यसेवागुरुराजयोगे, कलाकृषिस्त्रीशुभकर्मवित्तन्या/सोषधेषु च आररवि शस्तौ न । ___ अर्थ - द्रव्यादि के देने-लेने में, निधान में, वाणिज्य में, सेवा में, गुरु एवं राजदर्शन में, कला शिक्षण में, कृषि कर्म में, स्त्री समागम में, शुभ कर्म में, धन को गिरवी रखने में और औषधी सेवन में मंगल तथा शनि ये दो वार शुभ नहीं हैं। इसी बात को दैवज्ञवल्लभ के प्रणेता ने भी कहा है
सर्वार्थसाधका वारा गुरुशुक्रबुधेन्दवः ।
प्रोक्तमेव कृतं कार्यम् भौमार्कार्किषु सिध्यति ॥ । अर्थात् गुरु, शुक्र, बुध एवं सोम ये चारों वार समस्त अर्थों को सिद्ध करने वाले हैं। इन वारों में कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है, किन्तु मंगल, रवि एवं शनि इन तीन वारों में तो वही कार्य सिद्ध हो सकता है, जिस कार्य को उक्त वारों में करने का विधान है।
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