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[ मुहूर्तराज शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक चान्द्रमास-ब्रह्म सिद्धांत में
चान्द्रो मासो ह्यसंक्रान्तोऽधिकमासः प्रकीर्तितः ।
चान्द्रो मासो द्विसक्रान्तः क्षयमासः प्रकीर्तितः ॥७॥ अर्थ - शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक यह चान्द्र मास कहा जाता है। चान्द्रमास ही अधिकमास तथा क्षयमास बनता है। जिस चान्द्रमास में सूर्य का अन्य राशि में संक्रमण न हो उसे अधिक मास और जिस चान्द्रमास में सूर्य का दो राशियों में संक्रमण हो उसे क्षयमास कहते हैं। क्षय एवं अधिक संज्ञक मासों में वर्जनीय कार्य-गर्ग, बृहस्पति के मत में
अग्न्याधानं प्रतिष्ठां च यज्ञदानव्रतानि च ।
वेदव्रतवृषोत्सर्गचूडाकरणमेखलाः ॥८॥ अन्वय - (क्षये एवम् अधिमासे) अग्न्याधानं, प्रतिष्ठां, यज्ञदानव्रतानि (तथैव) वेदव्रतवृषोत्सर्ग चूडाकरणमेखलाश्च (एतानि कृत्यानि वर्जयेत्) ।
अर्थ - अग्निहोत्र, गृह एवं देवालय प्रतिष्ठा, यज्ञ, दान, व्रत, वेदोक्तव्रत (वेदाध्ययनारंभ) वृषोत्सर्ग, मुण्डन संस्कार एवं यज्ञोपवीत धारण आदि कार्य नहीं करने चाहिए । मलमास ज्ञान
धनुर्मीनगते सूर्ये मलमासोऽयमुच्यते ।
मंगलं नु सदा त्याज्यं यदि कुर्यान्न सिध्यति ॥९॥ अन्वय - सूर्ये धनुर्मीनराशिगते अयम् मलमास उच्यते, तत्र नु मंगलं त्याज्यम् (भवति) यदि (कश्चित्) कुर्यात् (तत् कार्यम्) न सिध्यति।
अर्थ - जब धनु एवं मीन राशि पर सूर्य हो तब उस मास को मलमास कहते हैं। इस मलमास में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए, यदि किया जाय तो वह सिद्ध नहीं होता। मरीचि -
गृह प्रवेश-गोदान-स्थानाश्रममहोत्सवम् ।
माङ्गल्यभिषेकं च मलमासे विवर्जयेत् ॥९॥ अन्वय - गृह प्रवेश-गोदान-स्थानाश्रम-महोत्सवम्, माङ्गल्यम् अभिषेकम् (राज्याभिषेकम्) मलमासे विवर्जयेत्।
अर्थ - मरीचि ऋषि कहते हैं कि मलमास में गृहप्रवेश, गोदान, स्थान आश्रम आदि का महोत्सव, मांगलिक कार्य एवं राज्याभिषेक इन कार्यों को न करें। और भी मलमास में वर्ण्य कार्यों के विषय में
मीने धनुषि राशौ च स्थिते सप्ततुरंगमे । क्षौरमन्नं न कुर्वीत विवाहं गृहकर्म च ॥
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