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मुहूर्तराज ]
[७ ___ अर्थ - सूर्य के धन और मीन राशियों पर, वृष और कुंभ राशियों पर, मेष और कर्क राशियों पर, मिथुन और कन्या राशियों पर, सिंह और वृश्चिक राशियों पर, तुला और मकर राशियों पर रहते क्रमश: (आदियुक्तिथि) अर्थात् २-४-६-८-१०-१२ ये तिथियाँ दग्धासंज्ञक हैं। दग्धातिथिफल-यतिवल्लभ में
कुष्ठं क्षौरेऽम्बरे दौःस्थय, गृहवेशेतु शून्यता ।
आयुधे मरणं यात्राकृष्युद् निरर्थकाः ॥ अन्वय - दग्धातिथि दिने क्षौरे कुष्ठं, अम्बरधारणे दौस्थ्यं, गृहप्रवेशे तू शून्यता, आयुधे (आयुधधारणानिर्माणादौ) मरणं (तथा) यात्राकृष्युद्वाहा: निरर्थका: (भवन्ति) । ____ अर्थ - दग्धातिथि को मुण्डन कराने से कुष्ठरोग, वस्त्रधारण से स्वास्थ्य हानि, गृहप्रवेश करने से घर में जनावास का अभाव, शस्त्र के धारण निर्माण आदि से मृत्यु अथवा मृत्युतुल्य कष्ट एवं यात्रा, कृषि
और उद्वाह (विवाह) ये सभी कार्य निष्फल होते हैं। प्रतिपदादि तिथियों के स्वामी-(मु.चि.शु.प्र.श्लो. ३)
तिथीश वन्हिको गौरी, गणेशोऽहिणुहो रविः ।
शिवो दुर्गान्तको विश्वे, हरिः कामः शिवः शशी ॥ अन्वय - प्रतिपद आरम्य क्रमश: वन्हिको, गौरी, गणेशः, अहिः, गुहः, रविः, शिवः, दुर्गा, अन्तकः, विश्वे, हरिः, काम:, शिव: शशी च एते तिथीनाम् ईशा: (स्वामिनः) सन्ति।
अर्थ - प्रतिपदादि तिथियों के अग्नि, ब्रह्मा, गौरी, गणपति, सर्प, गुह (स्वामी कार्तिक) सूर्य, शिव, दुर्गा, यम, विश्वेदेवा, विष्णु; कामदेव, शिव एवं चन्द्रमा ये स्वामी कहे गये हैं। तिथिवृद्धिक्षयलक्षण-(मु.चि.पी.टी.श्लो. ३४-३५ शुभाशुभ प्रकरणे)
यत्र या तिथिर्वारद्वयान्तं स्पृष्ट्वा तृतीयवारस्याप्यादिमं कंचिद्भागं स्पृशति सा तिथिर्वृद्धिसंज्ञका । यत्र यो वारः तिथिद्वयान्तं स्पृष्ट्वा तृतीय तिथेः कंचिदादिमं भागमपि स्पृशति तत्र तत्तृतीयतिथिमध्यस्था
तिथिः क्षयसंज्ञिता (अवमसंज्ञिता) ज्ञेया । अर्थ - जो तिथि दो वारों का स्पर्श करके तीसरे वार के भी कुछ आदि भाग का स्पर्श करती है वह तिथि वृद्धिसंज्ञक है। एवं जो वार दो तिथियों का स्पर्श करके तीसरी तिथि के भी कुछ अंश का स्पर्श करे तब उन तिथियों में मध्यस्थ तिथि क्षयसंज्ञक है। यह क्षयतिथि कुछेक आचार्यों के मत में अवमसंज्ञक कही जाती है।
वृद्धि तिथि का उदाहरण-चतुर्थी रवि के दिन ५८ घटी है, बाद में पंचमी आती है, सोमवार को पंचमी ६० घटी है और मंगलवार को पंचमी आदि की ३ घटी तक है अतः इस पंचमी ने रवि, सोम और मंगल इन तीन वारों का स्पर्श किया इसलिए पंचमी तिथि वृद्धिसंज्ञक तिथि हुई।
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