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[ मुहूर्तराज मध्या: एकादशीतः पूर्णिमां यावत् उत्तमाः अथ कृष्णे पक्षे व्यत्यया अर्थात् प्रतिपदात: पञ्चमी यावत् एतन्नाम्न्यः तिथयः उत्तमाः षष्ठीतः दशमी यावत मध्याः तथा च एकादशीतः आरभ्य अमां यावत हीनाः भवनि
__ अर्थ - शुक्ल तथा कृष्ण की प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा अथवा अमा तक तिथियाँ क्रमश: नन्दा, भद्रा, जया, रिक्ता एवं पूर्णा इन संज्ञाओं से व्यवहृत होती हैं। शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से पंचमी तक एतत्संज्ञक तिथियाँ हीन षष्ठी से दशमी तक ये तिथियाँ मध्य तथा एकादशी से पूर्णिमा तक की तिथियाँ उत्तम कही जाती हैं, किन्तु कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा से पंचमी तक की नंदादिसंज्ञक तिथियाँ उत्तम, षष्ठी से दशमी तक की मध्य और एकादशी से अमावस्या तक की इन संज्ञाओं की तिथियाँ हीन कही जाती हैं।
पक्षानुसार तिथियों में विशेषता ज्ञापक सारणी
शुक्ल पक्ष संज्ञाएँ
कृष्ण पक्ष
संज्ञाएँ
तिथियाँ
तिथियाँ
विशेष
विशेष हीना हीना हीना
नन्दा भद्रा जया रिक्ता
नन्दा
भद्रा जया रिक्ता
हीना
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पूर्णा
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उत्तमा उत्तमा उत्तमा उत्तमा उत्तमा मध्या मध्या मध्या मध्या
नन्दा भद्रा
नन्दा भद्रा जया रिक्ता पूर्णा
जया
रिक्ता
हीना मध्या मध्या मध्या मध्या मध्या उत्तमा उत्तमा उत्तमा उत्तमा उत्तमा
पूर्णा
मध्या
नन्दा
नन्दा
हीना
भद्रा
भद्रा
हीना
जया
हीना
रिक्ता पूर्णा
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जया रिक्ता पूर्णा
हीना हीना
दग्धातिथिनामक पंचांग दोष-आरम्भ सिद्धि में
दग्धार्केण धनुर्मीने २ वृषकुंभे ४ऽजकर्किणि ६ । द्वन्द्वकन्ये ८ मृगेन्द्रालौ १० तुलैणे १२ ह्यादियुक तिथि ॥
अन्वय - अर्केण धनुर्मीने, वृषकुंभे, अजकर्किणि, द्वन्द्वकन्ये, मृगेन्द्रालौ, तुलैणे क्रमश: आदियुक् तिथि: (द्वितीया, चतुर्थी, षष्ठी, अष्टमी, दशमी, द्वादशी च एतास्तिथयः) दग्धा (कथ्यते)
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