________________
पहला अधिकार १७
भया नाहीं, तैसे प्रगट किये भी जे मनुष्य ज्ञानरहित हैं या मिथ्यात्वादि विकार सहित हैं तिनकूं मोक्षमार्ग सूझता नाहीं तो ग्रन्थर्क तो मोक्षमार्ग प्रकाशकपनेका अभाव भया नाहीं। ऐसे इस ग्रन्थ का मोक्षमार्ग प्रकाशक ऐसा नाम सार्थक जानना ।
प्रस्तुत ग्रन्थ की आवश्यकता
इहां प्रश्न - जो मोक्षमार्ग के प्रकाशक ग्रन्थ पूर्व तो थे ही, तुम नवीन ग्रन्थ काहे को बनावो हो ? ताका समाधान जैसे बड़े दीपकनिका तो उद्योत बहुत तैलादिक का साधन रहे हैं, जिनके बहुत तैलादिक का शक्ति न होइ तिन स्तोक दीपक जो जिये तो वे उसका साधन राखि ताके उद्योतत अपना कार्य करे; तैसे बड़े ग्रन्थनिका तो प्रकाश बहुत ज्ञानादिक का साधन रहे है, जिनके बहुत ज्ञानादिक की शक्ति नाहीं तिनकूं स्तोक ग्रन्थ बनाय दीजिये तो वे वाका साधन राखि ताके प्रकाशर्तें अपनो कार्य करे। तातैं यह स्तोक सुगम ग्रन्थ बनाइए है । बहुरि इहां जो मैं यहु ग्रन्थ बनाऊँ हूँ सो कषायनितें अपनो मान बधावनेको वा लोभ साधने को वा यश होने को वा अपनी पद्धति राखने को नाहीं बनाऊँ हूँ। जिनकै व्याकरण न्यायादिकका वा नय प्रमाणादिकका वा विशेष अर्थनिका ज्ञान नाहीं तार्ते तिनकै बड़े ग्रन्थनिका अभ्यास तौ बनि सके नाहीं । बहुरि कोई छोटे ग्रन्थनिका अभ्यास बने तो भी यथार्थ अर्थ भासै नाहीं । ऐसे इस समयविषै मंदज्ञानवान जीव बहुत देखिये हैं तिनिका भला होने के अर्थि धर्मबुद्धित यह भाषामय ग्रन्थ बनाऊँ हूँ । बहुरि जैसे बड़े दरिद्री को अवलोकनमात्र चिन्तामणिकी प्राप्ति होय अर वह न अवलोकै, बहुरि जैसे कोढी अमृत पान करावे अर वह न करे तेसे संसारपीड़ित जीवको सुगम मोक्षमार्ग के उपदेश का निमित्त वनै अर वह अभ्यास न करे तो वाके अभाग्य की महिमा का वर्णन हमतें तो होय सकै नाहीं । वाका होनहारहीको विचारे अपने समता आवै । उक्तं च
साहीणे गुरुजोगे जेण सुतीह धम्मवयणाई ।
ते विट्ठचित्ता अह सुहडा भवभयविहूणा ॥७॥
स्वाधीन उपदेशदाता गुरु का योग जुड़े भी जे जीव धर्म्य वचननिकों नाहीं सुने हैं ते धीठ हैं अर उनका दुष्टचित्त है अथवा जिस संसारभयतें तीर्थंकरादिक डरे तिस संसारभयकरि रहित हैं, ते बड़े सुभट हैं। बहुरि प्रवचनसारविषै भी मोक्षमार्ग का अधिकार किया है तहां प्रथम आगमझान ही उपादेय कच्चा, सो इस जीवका तो मुख्य कर्त्तव्य आगमज्ञान है, याको होते तत्त्वनिका श्रद्धान हो है, तत्त्वनिका श्रद्धान भये संयमभाव हो है अर तिस आगमतें आत्मज्ञान की भी प्राप्ति हो है तब सहज ही मोक्ष की प्राप्ति हो है। बहुरि धर्म के अनेक अंग हैं तिनविषै एक ध्यान बिना यातें ऊँचा और धर्मका अंग नाहीं है तातें जिस तिसप्रकार आगम अभ्यास करना योग्य है । बहुरि इस ग्रन्थ का तो वांचना सुनना विचारना धना सुगम है, कोऊ व्याकरणादिक का भी साधन न चाहिए, तातैं अवश्य ताका अभ्यासविषै प्रवर्ती, तुम्हारा कल्याण होगा।
इति श्री मोक्षमार्गप्रकाशक नाम शास्त्रविषै पीठबन्धप्ररूपक प्रथम अधिकार समाप्त भया ।19।।