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मोक्षमार्ग प्रकाशक-२०४
यहाँ कोऊ कहै कि- असंयत देशसंयत सम्यग्दृष्टीकै कषायनिकी प्रवृत्ति विशेष है अर द्रव्यलिंगी मुनिकै थोरी है, याहीत असंयत देशसंयत सम्यग्दृष्टी तो सोलहवाँ स्वर्ग पर्यन्त ही जाय अर द्रव्यलिंगी उपरिन ग्रैवेयकपर्यन्त जाय। तातै भावलिंगी मुनितें तो द्रव्यालीको हीन कहो, असंयत देशसयत सम्यग्दृष्टीत याको हीन कैसे कहिए?
___ ताका समाधान- असंयत देशसंयत सम्यग्दृष्टीकै कषायनिकी प्रवृत्ति तो है परन्तु श्रद्धानविष किसी ही कषायके करनेका अभिप्राय नाहीं। बहुरि द्रव्यलिंगीकै शुभ कषाय करने का अभिप्राय पाइए है। श्रद्धानविष तिनको भले जाने है। तातें श्रद्धान अपेक्षा असंयत सम्यग्दृष्टितै भी याकै अधिक कषाय है। बहुरि द्रव्यलिंगीकै योगनिकी प्रवृत्ति शुभ रूप घनी हो है अर अघातिकर्मनिविषै पुण्य पापबंधका विशेष शुभ अशुभ योगनिके अनुसार है। तातें उपरिम अवेयकपर्यन्त पहुँचै है, सो किछू कार्यकारी नाहीं। जात अघातिया कर्म आत्मगुणके घातक नाहीं। इनके उदयतें ऊँचैनीचे पद पाए तो कहा भया। ए तो बाह्य संयोगमात्र संसार दशाके स्वांग हैं। आप तो आत्मा है, तातै आत्मगुण के घातक घातिया कर्म हैं, तिनका हीनपना कार्यकारी है। सो घातियाकर्मनिका बंध बाह्य प्रवृत्ति के अनुसार नाहीं। अंतरंग कषाय शक्ति के अनुसार है। याहीत, द्रव्यलिंगीत असंयत देशसंयत सम्यग्दृष्टिकै घातिकर्मनिका बंध थोरा है। द्रव्यलिंगीकै तो सर्वघातिकर्मनिका बंध बहुत स्थिति अनुभाग लिए होय अर असंयत देशसंयत सम्यग्दृष्टिकै मिथ्यात्व अनन्तानुबंधी आदि कर्मका तो बंध है ही नाहीं, अवशेषनिका बंध हो है सो स्तोक स्थिति अनुभाग लिए हो है। बहुरि द्रव्यलिंगी के कदाचित् गुणश्रेणीनिर्जरा न होय, सम्पग्दृष्टीकै कदाधित हो है अर देशसंयम सकलसंयम भए निरन्तर हो है। याहीत यहु मोक्षमार्गी भया है। तातै द्रव्यलिंगी मुनि असंयत देशसंयत सम्यग्दृष्टीत हीन शास्त्रविषै कह्या है। सो समयसार शास्त्रविषै द्रव्यलिंगी मुनिका हीनयना गाथा वा टीकाकलशानिविषै प्रगट किया है। बहुरि पंचास्तिकायकी टीकाविषै जहाँ केवल व्यवहारावलम्बीका कथन किया है, तहाँ व्यवहार पंचाचार होते भी ताका हीनपना ही प्रगट किया है। बहुरि प्रवचनसारविषै संसार तत्त्व द्रव्यलिंगीको कह्या । बहुरि परमात्मप्रकाशादि अन्य शास्त्रनिविषै भी इस व्याख्यानको स्पष्ट किया है। बहुरि द्रव्यलिंगी के जप तप शील संयमादि क्रिया पाइए है, तिनको भी अकार्यकारी इन शास्त्रनिविषै जहाँ तहाँ दिखाई है, सो तहाँ देखि लेना। यहाँ ग्रन्थ बधनेके भयतें नाहीं लिखिए हैं। ऐसे केवल व्यवहाराभासके अवलम्बी मिथ्यादृष्टी तिनका निरूपण किया। . अब निश्चय-व्यवहार दोऊ नयनिके आभासको अवलम्बै है, ऐसे मिथ्यादृष्टी तिनका निरूपण कीजिए है
निश्चय व्यवहारनयामासावलम्बी मिथ्यादृष्टियों का निरूपण जे जीव ऐसा माने हैं- जिनमतविधै निश्चय व्यवहार दोय नय कहे हैं, ताते हमको तिन दोऊनिका अंगीकार करना। ऐसे विचारि जैसे केवल निश्चयाभास के अवलम्बीनिका कथन किया था, तैसे तो निश्चयका अंगीकार कर हैं अर जैसे केवल व्यवहारामासके अवलम्बीनिका कथन किया था, तैसे व्यवहारका अंगीकार करै हैं। यद्यपि ऐसे अंगीकार करने विषै दोऊ नयनिके परस्पर विरोध है तथापि कर कहा, साँचा