Book Title: Mokshmarga Prakashak
Author(s): Jawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
Publisher: Pratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh

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Page 324
________________ मोक्षमार्ग प्रकाशक-२६८ वह निर्मल सकल कार्यकारी न होय। बहुरि जैसे बांदरेकै भी हस्तपादादि अंग हो हैं परन्तु जैसे मनुष्य के होय, तैसे न हो हैं। तैसे मिध्यादृष्टीनिकै भी व्यवहाररूप निःशंकितादिक अंग हो हैं परन्तु जैसे निश्चय की सापेक्ष लिए सम्यक्त्वो के होय तैसे न हो हैं ही सम्य सपिय पचीज ला पहें हैं- आशंकादिक, आठ मद, तीन मढ़ता, षट् अनायतन, सो ए सम्यक्त्वीक न होय। कदाचित् काहूकै कोई लागै सम्यक्त्वका सर्वथा नाश न हो है, तहाँ सम्यक्त्व मलिन ही हो है, ऐसा जानना। बहु..... 卐卐卐

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