Book Title: Mokshmarga Prakashak
Author(s): Jawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
Publisher: Pratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh

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Page 307
________________ नवमा अधिकार - २८१ बहुरि प्रश्न- जो कहीं शास्त्रनिविषै अरहन्तदेव निर्ग्रन्थ गुरु हिंसारहित धर्म का श्रद्धान को सम्यक्त्व कया है, सो कैसे है? ताका समाधान- अरहंत देवादिक का श्रद्धानतें कुदेवादिक का श्रद्धान दूरि होनेकरि गृहीत मिथ्यात्व का अभाव हो है। तिस अपेक्षा बाको सम्यक्त्व का है। सर्वथा सम्यक्त्व का लक्षण यहु नाहीं । जातैं द्रव्यलिंगी मुनि आदि व्यवहार धर्म के धारक मिथ्यादृष्टी तिनिकै भी ऐसा श्रद्धान हो है। अथवा जैसे अणुव्रत महाव्रत हो तो देशचारित्र सकलचारित्र होय वा न होय परन्तु अणुव्रत महाव्रत भए बिना देशचारित्र सकलचारित्र कदाचित् न होय । तातें इनि व्रतनिको अन्वयरूप कारण जानि कारणविषै कार्य का उपचार कर इनको चारित्र कह्या । तैसे अरहन्त देवादिक का श्रद्धान होतें तो सम्यक्त्व होय वा न होय परन्तु अरहंतादिकका श्रद्धान भए बिना तत्त्वार्थ श्रद्धान रूप सम्यक्त्व कदाचित् न होय । तार्ते अरहन्तादिक के श्रद्धान को अन्वयरूप कारण जानि कारणविषै कार्यका उपचारकरि इस श्रद्धान को सम्यक्त्व कला है। याहीर्ते याका नाम व्यवहारसम्यक्त्व है। अथवा जाकै तत्त्वार्थश्रद्धान होय, ताकै सांचा अरहन्तादिक के स्वरूप का श्रद्धान होय ही होय । तत्त्वार्थश्रद्धान बिना पक्षकार अरहन्तादिक का श्रद्धान करें परन्तु यथावत् स्वरूप की पहिचान लिए श्रद्धान होय नाहीं । बहुरि जाकै सांचा अरहन्तादिक के स्वरूप का श्रद्धान होय, तार्क तत्त्वश्रद्धान होय ही होय । जातैं अरहन्तादिक का स्वरूप पहिचाने जीव अजीव आक्षवादिक की पहिचान हो है । ऐसे इनको परस्पर अविनाभावी जानि कहीं अरहन्तादिक के श्रद्धान को सम्यक्त्व का है। यहाँ प्रश्न- जो नारकादिक जीवनिकै देवकुदेवादिकका व्यवहार नाहीं अर तिनिके सम्यक्त्व पाइए है, तातैं सम्यक्त्व होते अरहंतादिकका श्रद्धान होय ही होय, ऐसा नियम सम्भवे नाहीं ? ताका समाधान - सप्त तत्त्वनिका श्रद्धानविषे अरहंतादिकका श्रद्धान गर्भित है । जातैं तत्त्वश्रद्धानविषै मोक्षतत्त्वको सर्वोत्कृष्ट माने है। सो मोक्षतत्त्व तो अरहंत सिद्धका लक्षण है। जो लक्षणको उत्कृष्ट मानै, सो ताके लक्ष्यको उत्कृष्ट माने ही माने । तातैं उनको भी सर्वोत्कृष्ट मान्या, और को न मान्या, सो ही देवका श्रद्धान 'भया । बहुरि मोक्षके कारण संवर निर्जरा हैं, तातें इनको भी उत्कृष्ट माने है। सो संवर निर्जरा के धारक मुख्यपने मुनि हैं। तातैं मुनिको उत्तम मान्या, और को न मान्या, सो ही गुरुका श्रद्धान भया । बहुरि रागादिकरहित भावका नाम अहिंसा है, ताहीको उपादेय माने है, और को न माने है, सोई धर्मका श्रद्धान भया । ऐसे तत्त्वश्रद्धान विषै गर्भित अरहंतदेवादिकका भी श्रद्धान हो है । अथवा जिस निमित्ततें याकै तत्त्वार्थ श्रद्धान हो है, तिस निमित्ततैं अरहंतदेवादिकका भी श्रद्धान हो है । तातें सम्यक्त्वविषै देवादिकके श्रद्धान का नियम है। बहुरि प्रश्न- जो केई जीव अरहंतादिकका श्रद्धान करे हैं, तिनिके गुण पहिचान हैं अर उनके तत्त्वश्रद्धानरूप सम्यक्त्व न हो है । तातें जाकै सांचा अरहंतादिकका श्रद्धान होय, तार्के तत्त्वश्रद्धान होय ही होय, ऐसा नियम सम्भवे नाहीं ? ताका समाधान तत्त्वश्रद्धान विना अरहतादिकके छियालीस आदि गुण जाने है, सो पर्यायाश्रित गुण जाने है परन्तु जुदा-जुदा जीव पुद्गलविषै जैसे सम्भवै तैसे यथार्थ नाहीं पहिचान है । तातैं सांचा श्रद्धान

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