Book Title: Mokshmarga Prakashak
Author(s): Jawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
Publisher: Pratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh

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Page 316
________________ मोक्षमार्ग प्रकाशक- २६० उद्वेलना नहीं की है, ऐसे उपशम सम्यक्त्व के अभिमुख हुए जीव के २८ प्रकृतियों का सद्भाव देखा जाता है। ( यही बात श्री धवल ६ / २०७ में लिखी है। तथा यही बात जयधवल १२ / २५७ में है । जयध. १२ प्रस्ता. पृ. २० भी देखें) इस प्रकार यह स्पष्ट है कि उपशम सम्यक्त्व के अभिमुख २६, २७, २८, तीनों ही सत्त्व स्थान वाले यानी दर्शनमोह की १, २ या ३ प्रकृति वाले होते हैं। यही का यही कथन अनगार धर्मामृत २ / ४६-४७ की स्वोपज्ञ टीका पृ. १४७ ( ज्ञानपीठ) पर संस्कृत टीका में है। इस प्रकार उपशम सम्यक्त्वाभिमुख चरम समयवर्ती मिथ्यादृष्टि के भी २७ २८ या २६ तीनों प्रकार के स्थान मिल सकते हैं। (ज.ध. २/ २५३ से २५६ ) इस प्रकार दर्शनमोह उपशामना के प्रस्थापक या निष्ठापक के २६, २७, २८ तीनों ही स्थान बन जाते हैं। जय धवल १२ / ३१० विशेषार्थ भी दृष्टव्य है। जिसके एक की सत्ता है वह सातिशयमिध्यात्वी एक की ही प्रथमस्थिति करता है ( अनिवृत्तिकरण में अन्तरकरण क्रिया में) जिसके दो की सत्ता है। वह दो की तथा ३ की सत्ता वाला तीन की प्रथम स्थिति स्थापित करता है। इसी तरह जितने ( १, २ या ३) कर्माश हों उतने का ही अन्तरकरण होता है । (चवल ६- जमत्थि दंसणमोहणीयं तस्स सव्वस्स अंतरं कीरदि । ) इस तरह यह सिद्ध हुआ कि सादि मिध्यादृष्टि के किसी के एक क्री, किसी के दो की, किसी के तीन की सत्ता है। तथा सत्ता के अनुसार उतनी की ही [१ या २ या ३ की] उपशमक्रिया होती है । यह निर्विवाद सत्य है 1 उपशम कहा ? सो कहिए है अनिवृत्तिकरणविषै किया अंतरकरणविधानतै जे सम्यक्त्व का कालविषै उदय आवने योग्य निषेक थे, तिनिका तो अभाव किया, तिनिके परमाणु अन्यकालविषै उदय आवने योग्य निषेकरूप किए बहुरि अनिवृत्तिकरणही विषै किया उपशमविधान जे तिसकाल के पीछे उदय आवने योग्य निषेक थे ते उदीरणारूप होय इस कालविषै उदय न आय सके, ऐसे किए। ऐसे जहाँ सत्ता तो पाइए अर उदय न पाइए, ताका नाम उपशम है। सो यहु मिध्यात्वतें भया प्रथमोपशम सम्यक्त्व, सो चतुर्थादि सप्तमगुणस्थानपर्यन्त पाइए है। बहुरि उपशमश्रेणी को सन्मुख होर्ते सप्तम गुणस्थानदिषै क्षयोपशमसम्यक्त्यतैं जो उपशम सम्यक्त्व होय, ताका नाम द्वितीयोपशमसम्यक्त्व है। यहाँ करणकरि तीन ही प्रकृतीनिका उपशम हो है, जातें यार्क तीनहीकी सत्ता पाइए | यहाँ भी अंतरकरणविधान वा उपशमविधान तिनिके उदय का अभाव करे है सोही उपशम है सो यहु द्वितीयोपशम सम्यक्त्व सप्तमादि ग्यारवाँ गुणस्थानपर्यन्त हो है। पड़तां कोईकै छठे पाँचवें (चौथे गुणस्थान)' भी रहे है, ऐसा जानना। ऐसे उपशम सम्यक्त्व दोय प्रकार है। सो यहु सम्यक्त्व वर्तमान 9. "चौथे गुणस्थान" यह अन्य प्रतियों में अधिक है।

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