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मोक्षमार्ग प्रकाशक- २८८
कहिए' ऐसे दोय भेद ज्ञानका सहकारीपनाकी अपेक्षा किए। या प्रकार दशभेद सम्यक्त्व के किए । तहाँ सर्वत्र सम्यक्त्वका स्वरूप तत्त्वार्थ श्रद्धान ही जानना ।
बहुरि सम्यक्त्व के तीन भेद किए हैं। १. औपशमिक २. क्षायोपशमिक ३. क्षायिक । सो ए तीन भेद दर्शनमोहकी अपेक्षा किए हैं। तहाँ औपशमिकसम्यक्त्व के दोय भेद हैं। प्रथमोपशम सम्यक्त्व, द्वितीयोपशम सम्यक्त्व । तहाँ मिथ्यात्वगुणस्थानविषै करणकरि दर्शनमोहको उपशमाय सम्यक्त्व उपजै, ताको प्रथमोपशमसम्यक्त्व कहिए है। तहाँ इतना विशेष है- अनादि मिध्यादृष्टिकै तो एक मिथ्यात्व प्रकृतिहीका उपशम होय है, जातें याकै मिश्रमोहनी अर सम्यक्त्व - मोहनी की सत्ता है नाहीं । जब जीव उपशमसम्यक्त्व को प्राप्त होय, तहाँ तिस सम्यक्त्वके कालविषै मिध्यात्व के परमाणुनिको मिश्रमोहनीरूप वा सम्यक्त्वमोहनी रूप परिणमा है, तब तीन प्रकृतीनिकी सत्ता हो है । तातें अनादि मिध्यादृष्टी के एक मिध्यात्वप्रकृतिकी ही सत्ता है । तिसहीका उपशम हो है ।
बहुरि सादिमिध्यादृष्टिकै काहूकै तीन प्रकृतीनिकी सत्ता है, काहूकै एक ही की सत्ता है । जाकै सम्यक्त्वकालविषै तीनकी सत्ता भई थी, सो सत्ता पाईए, ताकै तीनकी सत्ता है अर जाकै मिश्रमोहनी सम्यक्त्वमोहनी की उद्वेलना होय गई होय, उनके परमाणु मिथ्यात्वरूप परिणमि गए होय, तार्के एक मिध्यात्व की सत्ता है। ता सादि मिध्यादृष्टी के तीन प्रकृतीनिका वा एक प्रकृतिका उपशम हो है।
विशेष- जिस जीव के सम्यक्त्व काल में तीन की सत्ता हुई थी वह जिस मिथ्यात्वी के पाई जाती है और वह उपशम सम्यक्त्व के योग्य होता है तो तीन का उपशम करता है। यदि उसके सम्यक्त्व की उद्वेलना हो गई हो तो मिथ्यात्व व सम्यग्मिथ्यात्व; ऐसे दो का सत्व रहता है। तथा जिसके सम्यग्मिथ्यात्व की भी उद्वेलना हो गई हो तो वह एक ( मिथ्यात्व) का उपशम करता है इस तरह सादि मिथ्यादृष्टि के किसी के तीन प्रकृति की सत्ता है, किसी के दो प्रकृति की सत्ता है तथा किसी के एक ही की सत्ता है।.... इस कारण सादि मिध्यादृष्टि के तीन प्रकृति का या दो प्रकृति का या एक प्रकृति का उपशम होता है। ऐसा कथन समीचीन है ।
बात यह है कि सम्यक्त्व के उद्वेलना काल से सम्यग्मिथ्यात्व का उद्वेलना - काल विशेष अधिक है। कहा भी है- सम्मत्तुब्वेलणकालावो सम्मामिच्छतुव्वेलणकालस्स विसेसाहियत्तादो (श्री जयधवल ८/८०) यही कारण है कि सादि मिध्यात्वी के जब सम्यक्त्व प्रकृति की उद्वेलना हो जाती है तब उस विवक्षित क्षण में भी सम्यग्मिथ्यात्व का सत्त्व बना रहता है। और इसी कारण २७ प्रकृतिक सत्त्व स्थान बन जाता है। तथा इस २७ प्रकृतिक सत्त्वस्थान का काल मिथ्यात्वी के
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१. सम्यक्त्व के इन दस भेदों का कथन निम्नलिखित ग्रन्थों में भी है राजवार्तिक ३/३६/२/२०१, दर्शनपाहुड़ टीका १२, यशस्तिलकचप्पू ६ / २३७ पृ. २८६, अनगारधर्मामृत २ / ६२ उत्तरपुराण ७६/५६४ तथा ५४ / २२६, पं. रतनचन्द मुख्तार व्यक्तित्व एवं कृतित्य - पृ. ३६४ ॥