Book Title: Mokshmarga Prakashak
Author(s): Jawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
Publisher: Pratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh

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Page 313
________________ नवमा अधिकार-२८७ बहुरि प्रश्न- केई शास्त्रनिधिषे लिम्वे हैं-आत्मा है सो ही निश्चय सम्यक्त्व है, और सर्व व्यवहार है सो कैसे है? ताका समाधान- विपरीताभिनिवेशरहित श्रन्द्रान भया सो आत्मा ही का स्वरूप है, तहाँ अभेदबुद्धि करि आत्मा अर सम्यक्त्वविर्ष भिन्नता नाहीं, तात निश्चयकरि आत्माही को सम्यक्त्व का। और सर्व सम्यक्त्नको निमित्तमात्र हैं वा भेदकल्पना किए आत्मा अर सम्यक्त्वक भिन्नता कहिए है तात और सर्व व्यवहार कह्या है, ऐसे जानना। या प्रकार निश्चयसम्यक्त्व अर व्यवहार सम्यक्त्वकरि सम्यक्त्व के दोय भेद हैं अर अन्य निमित्तादि अपेक्षा आज्ञासम्यक्त्वादि सम्यक्त्व के दश भेद कहे हैं, सो आत्मानुशासनविर्ष कया है माहामार्गसमुद्भवमुपदेशात्सूत्रबीजसंक्षेपात 1.... विस्तारार्थाभ्यां भवपवगाढपरमायगाढं च ।।११।। याका अर्थ- जिनआझातें तस्वश्रद्धान भया होय सो आज्ञा सम्यक्त्व है। यहाँ इतना जानना-"मोको जनआज्ञा प्रमाण है", इतना ही श्रद्धान सम्यक्त्व नाहीं है। आज्ञा पानना तो कारणभूत है। याहीत यहाँ आज्ञातें उपज्या कह्या है। तातें पूर्व जिनआज्ञा माननेते पाछ जो तत्व श्रद्धान भया सो आज्ञासम्यक्त्व है। ऐसे ही निर्गन्धमार्ग के अवलोकनेते तत्त्व श्रद्धान भया सो मार्गसम्यक्त्व है। (बहुरि उत्कृष्ट पुरुष तीर्थकरादिक तिनके पुराणनिका उपदेशते जो उपज्या सम्यग्ज्ञान ताकरि उत्पन्न आगमसमुद्रविष प्रवीणपुरुषनिकरि उपदेश आदित भई जो उपदेशदृष्टि सो उपदेशसम्यक्त्व है। मुनि के आचरण का विधानको प्रतिपादन करता जो आचारसूत्र ताहि सुनकरि श्रद्धान करना जो होय सो सूत्रदृष्टि भलेप्रकार कही है। यहु सूत्रसम्यक्त्व है। बहुरि बीज जे गणितज्ञान को कारण तिनकरि दर्शनमोहका अनुपम उपशम के बलते, दुष्कर है जानने की गति जाकी ऐसा पदार्थनिका समूह, ताकी भई है उपलब्धि अर्थात् श्रद्धानरूप परणति जाकै, ऐसा कर गानुयोग का ज्ञानी भया, ताकै बीजदृष्टि हो है। यहु बीज सम्यक्त्व जानना । बहुरि पदार्थनिको संक्षेपपनेत जानकरि जो श्रद्धान भया सो माली संक्षेपदृष्टि है। यह संक्षेपसम्यक्त्व जानना। जो द्वादशांगवानी को सुन कीहीं जो रुचि श्रद्धान, ताहि विस्तारदृष्टि हे भव्य तू जानि। यह विस्तारसम्यक्त्व है। बहुरि जैनशास्त्र के यचनविना कोई अर्थका निमित्तते भई सो अर्थदृष्टि है। यह अर्थसम्यक्त्व जानना।) ऐसे आट भेद तो कारण अपेक्षा किए। बहुरि अंग अर अंगवायसहित जैनशास्त्र ताको अवगाह करि जो निपजी सो अवगादृष्टि है। यह अवगाढ़सम्यक्त्व जानना । बहुरि श्रुतकेवली के जो तत्त्वश्रद्धान है, ताको अवगाइसम्यक्त्व कहिए। केवलज्ञानी के जो तत्त्वश्रद्धान है, ताको परमावगाढ़सम्यक्त्व १. मार्ग सम्यक्त्व के बाद मत्तजी की वहस्तलिखित प्रति में तीन लाइन का स्थान अन्य सम्यक्त्वों के लक्षण लिखने के __ लिए छोड़ा गया है। यहाँ ये लक्षण मुद्रित तथा हस्तलिखित अन्य प्रतियों के अनुसार दिये गये हैं।

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