Book Title: Mokshmarga Prakashak
Author(s): Jawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
Publisher: Pratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh

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Page 298
________________ मोक्षमार्ग प्रकाशक- २७२ यहाँ प्रश्न- जो असंयतसम्यग्दृष्टी के तो चारित्र नाहीं, वाकै मोक्षमार्ग भया है कि न भया है। ताका समाधान - मोक्षमार्ग याकै होसी, यहु तो नियम भया । तातै उपचारतें याकै मोक्षमार्ग भया भी कहिए। परमार्थतैं सम्यक्चारित्र भए ही मोक्षभार्ग हो है। जैसे कोई पुरुष के किसी नगर घालने का निश्चय भया तार्ते याको व्यवहारतें ऐसा भी कहिए " यहु तिस नगर को चल्या है", परमार्थतें मार्गविषै गमन किए ही चलना होसी । तैसे असंयतसम्यग्दृष्टी के वीतरागभावरूप मोक्षमार्ग का श्रद्धान भया, तातें वाको उपचारतें मोक्षमार्गी कहिए, परमार्थतें वीतरागभावरूप परिणमे ही मोक्षमार्ग होसी । बहुरि प्रवचनसार विषै भी तीनों की एकाग्रता भए ही मोक्षमार्ग का है, तातैं यह जानना तत्त्वश्रद्धान ज्ञान बिना तो रागादि घटाए मोक्षमार्ग नाहीं अर रागादि घटाए बिना तत्त्व श्रद्धानज्ञानतें भी मोक्षमार्ग नाहीं तीनों मिले साक्षात् मोक्षमार्ग हो है । - लक्षण और उसके दोष अब इनका निर्देश कर लक्षण निर्देश अर परीक्षाद्वारकरि निरूपण कीजिए है। तहाँ 'सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र मोक्षका मार्ग है,' ऐसा नाम मात्र कथन सो तो 'निर्देश' जानना बहुरि अतिव्याप्ति अव्याप्ति असम्भवपनाकरि रहित होय अर जाकरि इनको पहिचानिए, सो 'लक्षण' जानना । ताका जो निर्देश कहिए, निरूपण सो 'लक्षण निर्देश' जानना। तहाँ जाको पहिचानना होय, ताका नाम लक्ष्य है उस बिना औरका नाम अलक्ष्य है। सो लक्ष्य था अलक्ष्य दोऊविषे पाइए, ऐसा लक्षण जहाँ कहिए तहाँ अतिव्याप्तिपनो जानना । जैसे आत्माका लक्षण 'अमूर्त्तत्व' कहा। सो 'अमूर्तत्व' लक्षण है, सो लक्ष्य जो है आत्मा तिसविषै भी पाइए अर अलक्ष्य जो हैं आकाशादिक तिनविषे भी पाइए है। तातैं यह 'अतिव्याप्त' लक्षण है । याकरि आत्मा पहिचाने आकाशादिक भी आत्मा होय जांय, यहु दोष लागे । बहुरि जो कोई लक्ष्यविषे तो होय अर कोई विषै न होय, ऐसा लक्ष्य का एकदेशविषै पाइए, ऐसा लक्षण जहाँ कहिए, तहाँ अव्याप्तिपनो जानना । जैसे आत्माका लक्षण केवलज्ञानादिक कहिए, सो केवलज्ञान कोई आत्माविषै तो पाइए, कोईविषै न पाइए, तातें यहु 'अव्याप्त' लक्षण है । याकरि आत्मा पहिचाने स्तोकज्ञानी आत्मा न होय, यहु दोष लागे । बहुरि जो लक्ष्यविषै पाइए ही नाहीं, ऐसा लक्षण जहाँ कहिए तहाँ असम्भवपना जानना । जैसे आत्माका लक्षण जड़पना कहिए सो प्रत्यक्षादि प्रमाणकरि यहु विरुद्ध है जाते यहु 'असम्भव' लक्षण है। याकरि आत्मा माने पुद्गलादिक भी आत्मा होय जाय। अर आत्मा है सो अनात्मा हो जाय, यहु दोष लागे । ऐसे अतिव्याप्त अव्याप्त असम्भव लक्षण होय सो लक्षणाभास है। बहुरि लक्ष्यविषै तो सर्वत्र पाइए अर अलक्ष्यविषै कहीं न पाइए सो सांचा लक्षण है। जैसे आत्माका स्वरूप चैतन्य है सो यहु लक्षण सर्व ही आत्माविषै तो पाइए है, अनात्माविषै कहीं न पाइए। तातें यहु सांचा लक्षण है । याकरि आत्मा माने आत्मा

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