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मोक्षमार्ग प्रकाशक-२७५
ताका समाधान- जो यहाँ पदार्थ श्रद्धान करने का ही प्रयोजन होता तो सामान्यकरि वा विशेषकरि जैसे सर्व पदार्थनिका जानना होय तैसे ही कथन करते। सो तो यहाँ प्रयोजन है नाहीं। यहाँ तो मोक्ष का प्रयोजन है। सो जिन सामान्य वा विशेष भावनिका श्रद्धान किए मोक्ष होय अर जिनका श्रद्धान किए बिना मोक्ष न होय, तिनही का यहाँ निरूपण किया। सो जीव अजीव ए दोय तो बहुत द्रव्यनिकी एक जाति अपेक्षा सामान्यरूप तत्त्व कहे। सो ए दोय जाति जाने जीव के आपा परका श्रद्धान होय। तब पर” भिन्न आपाको जाने, अपना हित के अर्थि मोक्ष का उपाय करे अर आपतै भिन्न परको जाने, तब परद्रव्यते उदासीन होय रागादिक त्यागि मोक्षमार्गविषै प्रवः । तातें ए दोय जाति का श्रद्धान भए ही मोक्ष होय अर दोय जाति जाने बिना आपा परका श्रद्धान न होय, तब पर्यायबुद्धिः संसारीक प्रयोजन ही का उपाय करै। परद्रव्यविषै रागद्वेष रूप होय प्रवत्तै, तब मोक्षमार्गविष कैसे प्रवत् । तातें इन दोय जातिनिका श्रद्धान न भए मोक्ष न होय। ऐसे ए दोय तो सामान्य तत्त्व अवश्य श्रद्धान करने योग्य कहे। बहुरि आम्नवादिक पाँच कहे, ते जीव पुपल की पर्याय हैं। तात ए विशेषरूप तत्त्व हैं। सो इन पाँच पर्यायनिको जाने मोक्ष का उपाय करने का श्रद्धान होय। तहाँ मोक्ष को पहिचाने, तो ताको हित मानि ताका उपाय करे। तातें मोक्ष का श्रद्धान करना। बहुरि मोक्षका उपाय संवर निर्जरा है सो इनको पहिचान तो जैसे संवर निर्जरा होय तैसे प्रवत् । तातै संवर निर्जस का श्रद्धान करना। बहुरि संवर निर्जरा तो अभाव लक्षण लिये हैं; सो जिनका अभाव किया चाहिए, तिनको पहिचानने चाहिए। जैसे क्रोध का अभाव भए क्षमा होय सो क्रोध को पहिचान तो ताका अभाव करि क्षमारूप प्रवत्त । तैसे ही आस्रव का अभाव भए संवर होय अर बंध का एकदेश अभाव भए निर्जरा होय सो आस्रव बंथ की पहिचान तो तिनिका नाश करि संयर निर्जरारूप प्रवत् । तातै आम्नव बंध का श्रद्धान करना। ऐसे इन पांच पर्यायनिका श्रद्धान भए ही मोक्षमार्ग होय इनको न पहिचान तो मोक्ष की पहिचान बिना ताका उपाय काहेको करै। संवर निर्जरा की पहिचान बिना तिनविष कैसे प्रवः। आस्रव बंध की पहिचान बिना तिनिका नाश कैसे करे? ऐसे इन पाँच पर्यायनिका श्रद्धान न भए मोक्षमार्ग न होय । या प्रकार यद्यपि तत्त्वार्थ अनन्ते हैं, तिनिका सामान्य विशेषकरि अनेक प्रकार प्ररूपण होय। परन्तु यहाँ एक मोक्ष का प्रयोजन है तात दोय तो जाति अपेक्षा सामान्य तत्त्व अर पांच पर्यायरूप विशेष तत्त्व मिलाय सात ही तत्त्व कहे इनका यथार्थ श्रद्धान के आधीन मोक्षमार्ग है। इनि बिना औरनिका प्रधान होहु वा मति होहु वा अन्यथा श्रद्धान होहु, किसी के आधीन मोक्षमार्ग नाहीं, ऐसा जानना। बहुरि कहीं पुण्य पाप सहित नव पदार्थ कहे हैं सो पुण्य पाप आम्रयादिक के ही विशेष हैं, तातें सात तत्त्वनिविषै गर्भित भए । अथवा पुण्यपाप का श्रद्धान भए पुण्य को मोक्षमार्ग न माने वा स्वच्छन्द होय पापरूप न प्रवत्र्त, तारौं मोक्षमार्गविषै इनका श्रद्धान भी उपकारी जानि दोय तत्त्व विशेष के विशेष मिलाय नव पदार्थ कहे वा समयसारादिविषै इनको नय तत्त्व भी कहे हैं।
बहुरि प्रश्न- इनिका प्रधान सम्यग्दर्शन कह्या, सो दर्शन तो सामान्य अवलोकनमात्र अर श्रद्धान प्रतीतिमात्र, इनिकै एकार्थपना कैसे सम्भवै?
ताका उत्तर- प्रकरण के वशर्त धातु का अर्थ अन्यथा होय है। सो यहाँ प्रकरण मोक्षमार्ग का है,